Chapter 2 मानव तंत्र
( पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर )
बहुचयनात्मक प्रश्न–
1. विभिन्न स्तरों पर भोजन, भोजन पाचित रस तथा अवशिष्ट की गति को कौन नियंत्रित करता है?
(क) संवरणी पेशियां
(ख) म्यूकोसा
(ग) श्लेष्मी उपकला ।
(घ) दोनों ख व ग
2. निम्न में से कौन से दंत मांसाहारी पशुओं में सर्वाधिक विकसित होते हैं ?
(क) कुंतक
(ख) रदनक
(ग) अग्र-चवर्णक
(घ) चवर्णक
3. एपिग्लोटिस (epiglotis) का प्रमुख कार्य है
(क) भोजन को ग्रसनी में भेजना।
(ख) भोजन को श्वासनली में प्रवेश से रोकना
(ग) भोजन को ग्रहनी तक पहुंचाना
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
4. एंजाइमों द्वारा सर्वाधिक भोजन पाचन की क्रिया यहाँ संपन्न की जाती है
(क) अग्रक्षुद्रांत्र
(ख) क्षुद्रांत्र
(ग) ग्रहणी
(घ) वृहदान्र
5. निम्न में से कौन लार ग्रन्थि नहीं है?
(क) कर्णपूर्व ग्रन्थि
(ख) अधोजंभ
(ग) अधोजिह्वा
(घ) पीयूष ग्रन्थि
6. निम्न में से कौन सा एंजाइम अग्न्याशय द्वारा स्रावित नहीं होता?
(क) एमिलेज।
(ख) ट्रिप्सिन
(ग) रेनिन ।
(घ) लाइपेज |
7. निम्न में से कौन सा अंग द्वितीयक श्वसन अंग है
(क) मुख
(ख) नासिका
(ग) नासाग्रसनी
(घ) स्वरयंत्र
8. बाएं फेफड़े में पाए जाने वाले खंडों की संख्या है
(क) 3
(ख) 4
(ग) 2
(घ) 1
9. एलवियोलाई में पाई जाती है
(क) शल्की उपकला
(ख) उपकला
(ग) उपास्थि छल्ले
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
10. रुधिर का द्रव्य भाग क्या कहलाता है?
(क) सीरम
(ख) लसीका
(ग) प्लाज्मा
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
11. साधारणतः लाल रुधिर कणिकाओं का विनाश कहाँ होता है?
(क) प्लीहा
(ख) लाल अस्थि मज्जा
(ग) लसीका पर्व
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
12. निम्न में से कौन सी कोशिका श्वेत रक्त कणिका नहीं है?
(क) बी-लिंफोसाइट।
(ख) बिंबाणु ।
(ग) बेसोफिल
(घ) मोनोसाइट ।
13. किस रक्त समह में लाल रक्त कणिकाओं पर A व B दोनों ही प्रतिजन उपस्थित होते हैं ?
(क) O
(ख) A
(ग) B
(घ) AB
14. परिसंचरण के दौरान रक्त हृदय से कितनी बार गुजरता है?
(क) एक
(ख) तीन
(ग) दो।
(घ) चार
15. मनुष्य मुख्य रूप से किसका उत्सर्जन करता है?
(क) अमोनियो ।
(ख) यूरिक अम्ल |
(ग) यूरिया ।
(घ) क व ग दोनों
16. ग्लोमेरुलस कहाँ पाया जाता है?
(क) बोमेन संपुट में
(ख) वृक्क नलिका में
(ग) हेनले-लूप में
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
17. प्रमुख मानव नर लिंग हॉर्मोन है
(क) एस्ट्रोजन
(ख) प्रोजेस्टेरॉन
(ग) टेस्टोस्टेरॉन
(घ) ख व ग दोनोंh
18. निम्न में से प्राथमिक लैंगिक अंग है–
(क) वृषण कोष ।
(ख) अण्डाशय |
(ग) वृषण
(घ) ख व ग दोनों
19. प्रेरक तंत्रिकाएँ उद्दीपनों को पहुँचाती हैं
(क) केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र से अंगों तक
(ख) अंगों से केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र तक
(ग) क व ख दोनों सही हैं।
(घ) क व ख दोनों गलत हैं।
20. कॉर्पोरा क्वाड्रीजेमीन पाया जाता है
(क) अग्र मस्तिष्क में
(ख) पश्च मस्तिष्क में
(ग) मध्य मस्तिष्क में
(घ) क व ख दोनों में
21. पीयूष ग्रन्थि कौन सा हॉर्मोन स्रावित नहीं करती ?
(क) वृद्धि हार्मोन
(ख) वैसोप्रेसिन
(ग) मेलेटोनिन ।
(घ) प्रोलैक्टिन
22. दैनिक लय के नियमन के लिए उत्तरदायी है
(क) थाइराइड ग्रन्थि
(ख) अग्न्याशय
(ग) अधिवृक्क ग्रन्थि
(घ) पिनियल ग्रन्थि
उत्तरमाला-
1. (क)
2. (ख)
3. (ख)
4. (ग)
5. (घ)
6. (ग)
7. (क)
8. (ग)
9. (क)
10. (ग)
11. (क)
12. (ख)
13. (घ)
14. (ग)
15. (ग)
16. (क)
17. (ग)
18. (घ)
19. (क)
20. (ग)
21. (ग)
22. (घ)
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 23.
शरीर की मूलभूत संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई का नाम लिखें।
उत्तर-
शरीर की मूलभूत संरचनात्मक तथा क्रियात्मक इकाई को कोशिका (Cell) कहते हैं।
प्रश्न 24.
पाचन तंत्र को परिभाषित करें।
उत्तर-
भोजन के अन्तर्ग्रहण से लेकर मल त्याग तक एक तंत्र जिसमें अनेकों अंग, ग्रन्थियाँ सम्मिलित हैं, सामंजस्य के साथ कार्य करते हैं। यह तन्त्र पाचन तंत्र कहलाता है।
प्रश्न 25.
संवरणी पेशियों का क्या काम है?
उत्तर-
संवरणी पेशियाँ (Sphincters) भोजन, पाचित भोजन रस व अवशिष्ट की गति को नियंत्रित करती हैं।
प्रश्न 26.
पाचन तंत्र में सम्मिलित ग्रन्थियों के नाम लिखें।
उत्तर-
- लार ग्रन्थि
- यकृत
- अग्नाशय।
प्रश्न 27.
कुंतक दंत क्या काम करते हैं ?
उत्तर-
ये भोजन को कुतरने तथा काटने का कार्य करते हैं।
प्रश्न 28.
आमाशय के कितने भाग होते हैं ?
उत्तर-
आमाशय के तीन भाग होते हैं
- कार्डियक
- जठर निर्गमी भाग
- फंडिस।
प्रश्न 29.
पाचित भोजन का सर्वाधिक अवशोषण कहाँ होता है?
उत्तर-
पाचित भोजन का सर्वाधिक अवशोषण छोटी आँत (Small Intestine) में होता है।
प्रश्न 30.
शरीर में पाए जाने वाली सबसे बड़ी ग्रन्थि का नाम लिखें।
उत्तर-
शरीर में पाए जाने वाली सबसे बड़ी ग्रन्थि का नाम यकृत (Liver)
प्रश्न 31.
टायलिन एंजाइम कौन सी ग्रन्थि स्रावित करती है?
उत्तर-
लार ग्रन्थि द्वारा टायलिन एंजाइम का स्रावण किया जाता है।
प्रश्न 32.
स्वर यंत्र में कितनी उपास्थि पाई जाती हैं ?
उत्तर-
स्वर यंत्र में नौ उपास्थि पाई जाती हैं।
प्रश्न 33.
मनुष्यों की श्वासनली में श्लेष्मा का निर्माण कौन करता है?
उत्तर-
मनुष्य की श्वासनली में उपस्थित उपकला (Epithelium) श्लेष्मा का निर्माण करती है।
प्रश्न 34.
सामान्य व्यक्ति में कितना रक्त पाया जाता है?
उत्तर-
सामान्य व्यक्ति में लगभग 5 लीटर रक्त पाया जाता है।
प्रश्न 35.
बिंबाणु का जीवनकाल कितना होता है?
उत्तर-
बिंबाणु (Platelets) का जीवनकाल 10 दिवस का होता है।
प्रश्न 36.
अशुद्ध रुधिर को प्रवाहित करने वाली वाहिकाएँ क्या कहलाती हैं?
उत्तर-
अशुद्ध रुधिर को प्रवाहित करने वाली वाहिकाएँ शिरायें (Veins) कहलाती हैं।
प्रश्न 37.
हृदयावरण क्या है?
उत्तर-
हृदय पर पाया जाने वाला आवरण हृदयावरण (Pericardium) कहलाता है।
प्रश्न 38.
महाशिरा का क्या कार्य है?
उत्तर-
इसके द्वारा शरीर का अधिकांश अशुद्ध रुधिर दायें आलिन्द में डाला जाता है।
प्रश्न 39.
अमोनिया उत्सर्जन की प्रक्रिया क्या कहलाती है?
उत्तर-
अमोनिया उत्सर्जन की प्रक्रिया अमोनियोत्सर्ग (Ammonotelism) कहलाती है।
प्रश्न 40.
मानव में मुख्य उत्सर्जक अंग कौन सा है?
उत्तर-
मानव में मुख्य उत्सर्जक अंग वक्के (Kidney), है।
प्रश्न 41.
अण्डाणु निर्माण करने वाले अंग का नाम लिखें।
उत्तर-
अण्डाणु निर्माण करने वाले अंग का नाम अण्डाशय (Ovary) है।
प्रश्न 42.
स्त्रियों के प्रमुख लिंग हॉर्मोन का नाम लिखें।
उत्तर-
स्त्रियों के प्रमुख लिंग हार्मोन का नाम एस्ट्रोजन (Estrogen) है।
प्रश्न 43.
माता में प्लेसैंटा का रोपण कहाँ होता है?
उत्तर-
माता में प्लेसैंटा का रोपण गर्भाशय के अन्तःस्तर में होता है।
प्रश्न 44.
विभिन्न अंगों के मध्य समन्वय स्थापित करने के लिए उत्तरदायी तंत्रों का नाम लिखें।
उत्तर-
तंत्रिका तंत्र तथा अन्तःस्रावी तंत्र।
प्रश्न 45.
धूसर द्रव्य कहाँ पाया जाता है?
उत्तर-
धूसर द्रव्य मस्तिष्क व मेरुरज्जु में पाया जाता है।
प्रश्न 46.
एक न्यूरोट्रांसमीटर का नाम लिखें।
उत्तर-
ग्लाईसीन (Glycine), एपीनेफ्रीन, डोपामीन, सिरोटोनिन।
प्रश्न 47.
थाइराइड ग्रन्थि द्वारा स्रावित हार्मोन का नाम लिखें।
उत्तर-
थाइराइड ग्रन्थि द्वारा स्रावित हार्मोन का नाम थाइरॉक्सिन है।
प्रश्न 48.
एड्रिनलीन हार्मोन का स्राव किस ग्रन्थि के द्वारा किया जाता है?
उत्तर-
एड्रिनलीन हार्मोन को स्राव अधिवृक्क ग्रन्थि (Adrenal gland) द्वारा किया जाता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 49.
पाचन कार्य में सम्मिलित अंगों के नाम लिखिए।
उत्तर-
पाचन क्रिया में सम्मिलित अंगों के नाम निम्न हैं
- मुख (Mouth)-(i) तालु (ii) दाँत (iii) जीभ
- ग्रसनी (Pharynx)
- ग्रासनली (Oesophagus)
- आमाशय (Stomach)
- छोटी आँत (Small Intestine)-(i) ग्रहणी (ii) जेजुनम (iii) इलियम
- बड़ी आँत (Large Intestine)-(i) अंधनाल (Cecum) (ii) कोलन (Colon) (iii) मलाशय (Rectum)।
- पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands)-(i) लार ग्रन्थि (ii) यकृत (iii) अग्नाशय।
प्रश्न 50.
आमाशय की संरचना व कार्य समझाइए।
उत्तर-
आमाशय की संरचना-आमाशय उदर गुहा में बायीं ओर डायफ्राम के पीछे स्थित होता है। यह आहारनाल का सबसे चौड़ा थैलेनुमा पेशीय भाग है, जिसकी आकृति ‘J’ के समान होती है। ग्रसिका आमाशय के कार्डियक भाग में खुलती है। आमाशय एक से तीन लीटर तक भोजन धारित कर सकता है।
आमाशय को तीन भागों में बाँटा गया है
- कार्डियक भाग-आमाशय का अग्र भाग कार्डियक भाग कहलाता है। ग्रसिका व आमाशय के बीच एक कंपाट पाया जाता है, जिसे कार्डियक कपाट कहते हैं । इस कपाट के कारण भोजन ग्रासनली से आमाशय में तो आ सकता है, परन्तु आमाशय से ग्रासनली/ग्रसिका में नहीं जा सकता है।
- जठर निर्गमी भाग (Pyloric part)-आमाशय का पश्च या दाहिना भाग जठर निर्गमी भाग (Pyloric part) कहलाता है। यह भाग ग्रहणी (छोटी आँत) में खुलता है। इसके छिद्र पर एक पेशीय कपाट पाया जाता है, जो भोजन को आमाशय से ग्रहणी (आँत) में तो जाने देता है परन्तु ग्रहणी से आमाशय में नहीं जाने देता। इस कपाट को पाइलोरिक कपाट कहते हैं।
- फंडिस भाग (Fundic part)-आमाशय का मध्य भाग फंडिस भाग कहलाता है। यह आमाशय के 80 प्रतिशत भाग का निर्माण करता है। इस भाग में ही वास्तव में पाचन क्रिया होती है।
आमाशय के कार्य-
(1) आमाशय में भोजन का क्रमाकुंचन तरंगों द्वारा पाचन किया जाता है, जिसके फलस्वरूप भोजन एक लेई के रूप में बदल जाता है, जिसे काइम (Chyme) कहते हैं।
(2) आमाशय में पाया जाने वाला HCl निम्न कार्य करता है
- भोजन में उपस्थित हानिकारक जीवाणुओं को नष्ट करता है।
- कठोर ऊतकों को घोलता है।
- निष्क्रिय एन्जाइम पेप्सिनोजन को सक्रिय पेप्सिन में बदलना तथा निष्क्रिय प्रोरेरिन को सक्रिय रेनिन में बदलना।
- टायलिन की क्रिया को बन्द करना।
- मुखगुहा से आये भोजन के माध्यम को अम्लीय बनाना एवं जठर निर्गम कपाट को नियंत्रण करना।
प्रश्न 51.
लार ग्रन्थि कहाँ पाई जाती है? इसकी संरचना समझाइए।
उत्तर-
लार ग्रन्थियाँ (Salivary glands)-मनुष्य में तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ पाई जाती हैं। ये ग्रन्थियाँ बहिःस्रावी (Exocrine) होती हैं।
- कर्णपूर्व ग्रन्थि (Parotid gland)-ये ग्रन्थियाँ सबसे बड़ी होती हैं। तथा कर्ण के नीचे अर्थात् गालों में पाई जाती हैं। इन ग्रन्थियों की नलिका कुंतक दाँतों के समीप खुलती है। यह सीरमी तरल का स्राव करती
- अधोजंभ ग्रन्थियाँ (Submandibular glands) ये ग्रन्थियाँ ऊपरी जबड़े व निचले जबड़े के जोड़ पर पाई जाती हैं। इन ग्रन्थियों की नलिकाएँ मुख्य गुहिका के फर्श पर खुलती हैं। ये एक मिश्रित ग्रन्थि है जो तरल तथा श्लेष्मिक स्रावण करती है।
- अधोजिह्वा ग्रन्थि (Sublingual glands)-ये ग्रन्थियाँ जिह्वा के नीचे पाई जाती हैं। ये सबसे छोटी लार ग्रन्थियाँ होती हैं। इन ग्रन्थियों की नलिकाएँ फ्रेनुलम (Frenulum) पर खुलती हैं। इनके द्वारा श्लेष्मिक स्रावण किया जाता है।
लार ग्रन्थियों के स्रावण को लार (Saliva) कहते हैं । लार एक क्षारीय तरल होता है। इसमें श्लेष्मा, जल, लाइसोजाइम व टायलिन नामक एन्जाइम उपस्थित होता है, जो भोजन के पाचन में सहायक होता है। इसका कार्य भोजन को चिकना व घुलनशील बनाना है, ताकि निगलने में आसानी हो।
प्रश्न 52.
नासिका के मुख्य कार्यों की विवेचना करें।
उत्तर-
नासिका के मुख्य कार्य निम्न हैं
- नासिका में स्थित नासा मार्ग लगातार श्लेष्मा स्रावण के कारण नम व लसदार बना होता है, जो फेफड़ों तक जाने वाली वायु को नम बना देते हैं।
- वायु के साथ आये हानिकारक धूल के कण, जीवाणु, परागकण, फफूद के कण आदि श्लेष्मा के साथ चिपक जाते हैं। इस प्रकार वायु का फिल्टरेशन होता है।
- नासागुहाओं के अग्रभागों की श्लेष्मा झिल्ली में तंत्रिका तंतुओं के अनेक स्वतंत्र सिरे उपस्थित होते हैं, जो गंध के बारे में ज्ञान प्राप्त करवाते हैं।
- नासा मार्ग से गुजरते समय वायु का ताप शरीर के ताप के समान हो जाता है।
- नाक में पाये जाने वाले बाल भी वायु को फिल्टर करने का कार्य करते हैं।
प्रश्न 53.
ग्रसनी किस प्रकार श्वसन कार्य में सहायक होती है?
उत्तर-
ग्रसनी एक पेशीय चिमनीनुमा रचना होती है। ग्रसनी तीन भागों में विभक्त होती है
- नासाग्रसनी (Nasopharynx)
- मुखग्रसनी (Oropharynx)
- अधोग्रसनी या कंठ ग्रसनी (Laryngo Pharynx)
श्वसन क्रिया के दौरान वायु नासिका गुहा से गुजरने के बाद नासाग्रसनी से होती हुई मुखग्रसनी में आती है। मुख से ली गई श्वास सीधे मुखग्रसनी में तथा मुखग्रसनी से वायु कंठ-ग्रसनी से होते हुए घांटी ढक्कन (Epiglottis) के माध्यम से स्वरयंत्र (Larynx) में प्रवेश करती है। घांटी ढक्कन एक उपास्थि की बनी संरचना है, जो श्वासनली एवं आहारनली के मध्य एक स्विच का कार्य करता है। चूँकि ग्रसनी भोजन निगलने में भी सहायक है, ऐसे में एपिग्लॉटिस एक ढक्कन के तौर पर कार्य करता है तथा यह सुनिश्चित करता है कि वायु श्वास नली में ही जाये तथा भोजन आहार नली में।
प्रश्न 54.
श्वसन मांसपेशियों के महत्त्व को लिखें।
उत्तर-
श्वसन मांसपेशियों का महत्त्व
- गैसों के आदान-प्रदान हेतु मांसपेशियों का योगदान है।
- ये मांसपेशियाँ श्वांस को लेने व छोड़ने में सहायता करती हैं।
- मध्यपट (Diaphragm) कंकाल पेशी का बना होता है जो वक्ष स्थल की सतह पर पाया जाता है। यह श्वसन के लिए उत्तरदायी है।
- मध्यपट के संकुचन से वायु नासिका से होती हुई फेफड़ों के अन्दर प्रवेश होती है अर्थात् निःश्वसन (Inspiration) की क्रिया होती है।
- मध्यपट के शिथिलन से वायु फेफड़ों से बाहर निकलती है अर्थात् उच्छश्वसन (Expiration) की क्रिया होती है।
- इसी प्रकार पसलियों के बीच दो क्रॉस के रूप में अन्तरापर्युक पेशियाँ (Intercostal muscles) होती हैं जो मध्यपट के संकुचन व शिथिलन में मदद करती हैं।
प्रश्न 55.
रक्त को परिभाषित कीजिए तथा रक्त के कार्य लिखें।
उत्तर-
रक्त एक प्रकार का तरल संयोजी ऊतक है, जो आवश्यक पोषक तत्व व ऑक्सीजन को कोशिकाओं में तथा कोशिकाओं से चयापचयी अपशिष्ट उत्पादों तथा Co2, का परिवहन करता है। यह एक हल्का क्षारीय तरल है। इसका pH 7.4 होता है।
रक्त के कार्य|
- O2 व Co2, का वातावरण तथा ऊतकों के मध्य विनिमय करना।
- पोषक तत्वों का शरीर में विभिन्न स्थानों तक परिवहन।
- शरीर का पी.एच. (pH) नियंत्रित करना।
- शरीर का ताप नियंत्रण।
- प्रतिरक्षण के कार्यों को संपादित करना।
- हार्मोन आदि को आवश्यकता के अनुरूप परिवहन करना।
- उत्सर्जी उत्पादों को शरीर से बाहर करना।
प्रश्न 56.
रक्त परिसंचरण में रक्त वाहिनियों की भूमिका बताइए।
उत्तर-
रक्त परिसंचरण में रक्त वाहिनियों की भूमिका-शरीर में रक्त का परिसंचरण वाहिनियों द्वारा होता है। रक्त वाहिकाएँ एक जाल का निर्माण करती हैं। जिनमें प्रवाहित होकर रक्त कोशिकाओं तक पहुँचता है। ये दो प्रकार की होती हैं
- धमनियाँ (Arteries)-ये वाहिनियाँ ऑक्सीजनित साफ रुधिर को हृदय से शरीर के विभिन्न अंगों तक ले जाती हैं। इनमें रुधिर दाब के साथ बहता है। इसीलिए इनकी दीवार मोटी एवं लचीली होती है। सामान्यतः धमनियाँ शरीर की गहराई में स्थित होती हैं परन्तु गर्दन व कलाई में ये त्वचा के नीचे ही स्थित होती हैं।
- शिराएँ (Veins)-इनके द्वारा विऑक्सीजनित अपशिष्ट युक्त रुधिर शरीर के विभिन्न भागों से हृदय की ओर प्रवाहित होता है। इनकी दीवार पतली व पिचकने वाली होती है। शिराओं की गुहा अपेक्षाकृत अधिक चौड़ी होती है। अतः इनमें रुधिर का दाब बहुत कम होता है। रुधिर दाब कम होने के कारण इन शिराओं में स्थानस्थान पर अर्धचन्द्राकार कपाट होते हैं जो रुधिर को उल्टी दिशा में बहने से रोकते हैं।
रक्त वाहिनियाँ विभिन्न अंगों एवं ऊतकों में पहुँचकर केशिकाओं का विस्तृत समूह बनाती हैं।
प्रश्न 57.
वृक्क की संरचना समझाइए।
उत्तर-
वृक्क (Kidney)-मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क पाये जाते हैं। दोनों वृक्क उदर गुहा के पृष्ठ भाग में आमाशय के नीचे कशेरुक दण्ड के इधर-उधर स्थित होते हैं। वृक्क गहरे भूरे रंग एवं सेम के बीज की आकृति के होते हैं अर्थात् इनका बाहरी भाग उभरा हुआ तथा भीतरी भाग दबा हुआ होता है जिसके मध्य में एक छोटा-सा गड्ढा होता है। इस गड्ढे को हाइलम (Hilum) कहते हैं। हाइलम भाग से वृक्क धमनी प्रवेश करती है किन्तु वृक्क शिरा (Renal Vein) एवं मूत्र वाहिनी (Ureter) बाहर निकलती है। बायां वृक्क दाहिने वृक्क से थोड़ा ऊपर स्थित होता है एवं दाहिने वृक्क से आकार में कुछ बड़ा होता है।
प्रत्येक वृक्क के दो भाग होते हैं-बाहरी भाग को वल्कुट (Cortex) तथा अन्दर वाले भाग को मध्यांश (medula) कहते हैं। प्रत्येक वृक्क में लाखों महीन कुण्डलित नलिकाएँ पाई जाती हैं। इन नलिकाओं को वृक्क नलिकाएँ या नेफ्रॉन (Nephron) कहते हैं । यह वृक्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। प्रत्येक नेफ्रॉन के दो भाग होते हैं-(i) बोमेन सम्पुट (ii) वृक्क नलिका या नेफ्रॉन।।
प्रश्न 58.
वृक्क के अलावा उत्सर्जन के कार्य में आने वाले अन्य अंगों के बारे में लिखिए।
उत्तर-
यद्यपि वृक्क मनुष्य के प्रमुख उत्सर्जी अंग हैं किन्तु इनके अतिरिक्त निम्नलिखित अंग भी उत्सर्जन कार्य में सहायक होते हैं|
- त्वचा (Skin)-त्वचा में स्वेद ग्रन्थियाँ (Sweat Glands) पायी जाती हैं। इसमें स्वेद का स्रावण होता है। स्वेद से होकर जल की अतिरिक्त मात्रा, लवण, कुछ मात्रा में Co2 व कुछ मात्रा में यूरिया का त्याग भी होता है।
सीबम के रूप में निकले तेल के रूप में यह हाइड्रोकार्बन व स्टेरोल आदि के उत्सर्जन का काम करता है। - यकृत (Liver)-यकृत में अमोनिया को क्रेब्स हॅसिलिट चक्र द्वारा युरिया में बदला जाता है। यकृत द्वारा पित्त का निर्माण होता है। यकृत बिलिरुबिन (Bilirubin), बिलिवर्डिन (Biliverdin), विटामिन, स्टीरॉयड हार्मोन आदि का मल के साथ उत्सर्जन करने में मदद करती है।
- प्लीहा (Spleen)-प्लीहा को RBC का कब्रिस्तान कहा जाता है। यहाँ मृत RBC के विघटन से बिलिरुबिन व बिलिवर्डिन का निर्माण होता है, जो यकृत में जाकर पित्त का हिस्सा बन जाते हैं। इन वर्णकों का त्याग मल के साथ कर दिया जाता है। यूरोक्रोम भी RBC के विघटन के द्वारा निर्मित होता है व मूत्र द्वारा इसका त्याग कर दिया जाता है। इसके कारण मूत्र हल्का पीला होता है।
- आन्त्र (Intestine)-आन्त्र में पित्त रस के माध्यम से डाले गये अपशिष्ट पदार्थ शरीर से बाहर निकाल दिये जाते हैं । आन्त्र से मल के साथ मृत कोशिकाओं का भी त्याग होता है।
- फुफ्फुस (Lungs)-फुफ्फुस द्वारा उच्छ्श्व सन के दौरान Co2 का त्याग कर दिया जाता है व साथ ही जलवाष्प का भी त्याग होता है।
प्रश्न 59.
स्त्रियों के प्राथमिक लैंगिक अंग के कार्य लिखें।
उत्तर-
स्त्रियों में प्राथमिक लैंगिक अंग के रूप में एक जोड़ी अण्डाशय (ovaries) पाये जाते हैं, जिसके निम्न कार्य हैं
- अण्डाशय में अण्डे का उत्पादन होता है।
- अण्डाशय एक अन्त:स्रावी ग्रन्थि है अतः इसके द्वारा दो प्रकार के हार्मोन का स्रावण होता है, जिन्हें क्रमशः एस्ट्रोजन (Estrogen) व प्रोजेस्टेरोन (Progesteron) हार्मोन कहते हैं।
- एस्ट्रोजन हार्मोन द्वारा मादा में द्वितीयक लैंगिक लक्षणों का विकास होता है।
- एस्ट्रोजन हार्मोन नारीत्व हार्मोन (Feminizing Hormone) कहलाता है।
- एस्ट्रोजन हार्मोन मादाओं में मैथुन इच्छा जागृत करता है।
- प्रोजेस्टेरोन गर्भधारण व गर्भावस्था के लिए आवश्यक हार्मोन है, इसे गर्भावस्था हार्मोन (Pregnancy Hormone) कहते हैं। प्रोजेस्टेरोन की कमी से गर्भपात हो जाता है।
प्रश्न 60.
मानव जनन तंत्र में शुक्रवाहिनी का क्या कार्य है?
उत्तर-
शुक्रवाहिनी के कार्य
- शुक्रवाहिनी की भित्ति पेशीय होती है व इसमें संकुचन व शिथिलन की क्षमतां पाई जाती है। संकुचन व शिथिलन द्वारा शुक्राणु शुक्राशय तक पहुँचा दिये जाते हैं।
- शुक्रवाहिनियों में ग्रन्थिल कोशिकाएँ भी पाई जाती हैं जो चिकने पदार्थ का स्रावण करती हैं। यह द्रव शुक्राणुओं को गति करने में सहायता करता है।
प्रश्न 61.
मेरुरज्जु का क्या महत्त्व है?
उत्तर-
मेरुरज्जु का महत्त्व
- मेरुरज्जु मुख्यतः प्रतिवर्ती क्रियाओं के संचालन एवं नियमन करने का कार्य करता है।
- साथ ही मस्तिष्क से प्राप्त तथा मस्तिष्क को जाने वाले आवेगों के लिए पथ प्रदान करता है।
प्रश्न 62.
अग्र मस्तिष्क के क्या कार्य हैं? इसकी संरचना समझाइए।
उत्तर-
अग्र मस्तिष्क के कार्य-अग्र मस्तिष्क प्रमस्तिष्क, थैलेमस तथा हाइपोथैलेमस से मिलकर बना होता है।
- प्रमस्तिष्क के कार्य-यह बुद्धिमत्ता, याददास्त, चेतना, अनुभव, विश्लेषण, क्षमता, तर्कशक्ति तथा वाणी आदि उच्च मानसिक कार्यकलापों के केन्द्र का कार्य करता है।
- थैलेमस के कार्य-संवेदी व प्रेरक संकेतों का केन्द्र है।
- हाइपोथैलेमस के कार्य-यह भाग भूख, प्यास, निद्रा, ताप, थकान, मनोभावनाओं की अभिव्यक्ति आदि का ज्ञान करवाता है।
अग्र मस्तिष्क की संरचना-प्रमस्तिष्क पूरे मस्तिष्क के 80-85 प्रतिशत भाग का निर्माण करता है। यह अनुलम्ब विदर की सहायता से दो भागों में विभाजित होता है, जिन्हें क्रमशः दायाँ व बायाँ प्रमस्तिष्क गोलार्ध कहते हैं। दोनों प्रमस्तिष्क गोलार्ध कार्पस कैलोसम पट्टी से आपस में जुड़े होते हैं। प्रत्येक गोलार्ध में बाहर की ओर धूसर द्रव्य पाया जाता है, जिसे बाहरी वल्कुट (Cortex) कहते हैं तथा अन्दर श्वेत द्रव्य (White matter) होता है, जिसे मध्यांश (Medulla) कहते हैं। जो मेरुरज्जु के विन्यास से विपरीत होता है।
प्रमस्तिष्क चारों ओर से थैलेमस से घिरा होता है। अग्र मस्तिष्क के डाइएनसीफेलॉन भाग पर हाइपोथैलेमस स्थित होती है।
प्रश्न 63.
अंतःस्रावी तंत्र में हाइपोथैलेमस की क्या भूमिका है?
उत्तर-
हाइपोथैलेमस द्वारा विशेष मोचक हार्मोनों का संश्लेषण किया जाता है। ये हार्मोन इस ग्रन्थि से निकलकर पीयूष ग्रन्थि को विभिन्न हार्मोन स्राावित करने हेतु उद्दीपित करते हैं। हाइपोथैलेमस द्वारा दो प्रकार के हार्मोन का संश्लेषण किया जाता है
- मोचक हार्मोन-पीयूष ग्रन्थि को स्राव करने हेतु प्रेरित करते हैं।
- निरोधी हार्मोन-ये पीयूष ग्रन्थि से हार्मोन स्राव को रोकते हैं अर्थात् पीयूष ग्रन्थि द्वारा हार्मोनों के उत्पादन तथा स्रावण का नियंत्रण करते हैं। इस कारण से हाइपोथैलेमस को अन्त:स्रावी नियमन का सर्वोच्च कमाण्डर कहा जाता है। पीयूष ग्रन्थि पर नियंत्रण द्वारा हाइपोथैलेमस शरीर की अधिकांश क्रियाओं का नियमन करता है। इन हार्मोन को न्यूरो हार्मोन भी कहते हैं। शरीर में समस्थैतिका कायम रखने में तंत्रिका तंत्र व अन्त:स्रावी तंत्र समन्वित रूप से कार्यरत रहते हैं।
प्रश्न 64.
अग्नाशय के बहिःस्रावी तथा अंतःस्रावी कार्य को समझाइए।
उत्तर-
अग्नाशये एक बहिःस्रावी तथा अन्तःस्रावी दोनों प्रकार की ग्रन्थि है। इसे मिश्रित ग्रन्थि (Mixed gland) भी कहते हैं। अग्नाशय पाचक ग्रन्थि होने के कारण इसे बहि:स्रावी ग्रन्थि कहते हैं क्योंकि इससे निर्मित पाचक एन्जाइम नलिका (अग्नाशय नलिका) के माध्यम से ग्रहणी में पहुँचता है अर्थात् यह एक नलिकायुक्त ग्रन्थि है इसलिए इसे बहिःस्रावी ग्रन्थि कहते हैं।
इसके साथ ही इसमें लैंगरहेन्स की द्वीपिका की उपस्थिति के कारण इसे अन्त:स्रावी ग्रन्थि कहते हैं। इससे स्रावित होने वाले दो हार्मोन जिन्हें क्रमश: इन्सुलिन व ग्लूकोगॉन कहते हैं। इन्सुलिन का प्रमुख कार्य ग्लूकोज को ग्लाइकोजन में परिवर्तित कर रक्त शर्करा के स्तर को नियंत्रित करना है जबकि ग्लूकोगॉन इसके विपरीत ग्लाइकोजन को ग्लूकोज में परिवर्तन को नियंत्रित करता है ताकि रक्त में शर्करा का स्तर सही बना रहे। किसी कारण से यदि रक्त में इन्सुलिन की कमी हो जाए तो रक्त में शर्करा का स्तर बढ़ जाता है तथा मधुमेह नामक रोग उत्पन्न हो जाता है। इनमें नलिकाओं का अभाव होता है अतः अन्त:स्रावी ग्रन्थि के रूप में कार्य करती है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 65.
मानव पाचन तंत्र पर एक विस्तृत लेख लिखें। पाचन तंत्र में प्रयुक्त होने वाले एंजाइमों के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर-
पाचन तन्त्र-भोजन के अन्तर्ग्रहण से लेकर मल त्याग तक एक तन्त्र जिसमें अनेकों अंग, ग्रन्थियाँ आदि सम्मिलित हैं, सामंजस्य के साथ कार्य करते हैं, यह पाचन तन्त्र कहलाता है।
पाचन में भोजन के जटिल पोषक पदार्थों व बड़े अणुओं को विभिन्न रासायनिक क्रियाओं तथा एन्जाइमों की सहायता से सरल, छोटे व घुलनशील पदार्थों में परिवर्तित किया जाता है।
पाचन तन्त्र निम्न दो रचनाओं से मिलकर बना होता है
I. आहार नाल (Alimentary Canal)
II. पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands)
I. आहार नाल (Alimentary Canal)-मनुष्य की आहार नाल लम्बी कुण्डलित एवं पेशीय संरचना है जो मुँह से लेकर गुदा तक फैली रहती है। मनुष्य में आहार नाल लगभग 8 से 10 मीटर लम्बी होती है। आहार नाल के प्रमुख अंग निम्न हैं
(1) मुख (Mouth)
(2) ग्रसनी (Pharynx)
(3) ग्रासनली (Oesophagus)
(4) आमाशय (Stomach)
(5) छोटी आँत (Small Intestine)
(6) बड़ी आँत (Large Intestine)
1. मुख (Mouth)-मुख दो गतिशील पेशीय होठों के द्वारा घिरा होता है, जिन्हें क्रमशः ऊपरी होठ व निचला होठ कहते हैं। मुख मुखगुहा में खुलता है जो एक कटोरेनुमा होती है। मुखगुहा की छत को तालू कहते हैं। मुखगुहा की तल पर मांसल जीभ पाई जाती है। जीभ भोजन को चबाने का कार्य करती है। ऊपरी व निचले जबड़ा में 16-16 दाँत पाये जाते हैं, जो भोजन चबाने में सहायता करते हैं। दाँत चार प्रकार के होते हैं, कुंतक, रदनक, अग्र चवर्णक एवं चवर्णक।।
2. ग्रेसनी (Pharynx)-मुखगुहा पीछे की ओर एक कीपनुमा नलिका में • खुलती है, जिसे ग्रसनी कहते हैं। ग्रसनी तीन भागों में विभक्त होती है, जिन्हें क्रमशः नासाग्रसनी, मुखग्रसनी व कंठग्रसनी कहते हैं। ग्रसनी में कोई किसी प्रकार पाचन नहीं होता है। यह भोजन ग्रसीका में भेजने का कार्य करती है।
3. ग्रासनली (Oesophagus)-यह सीधी नलिकाकार होती है जो ग्रसनी को आमाशय से जोड़ने का कार्य करती है। यह ग्रीवा तथा वक्ष भाग से होती हुई तनुपट (Diaphragm) को भेदकर उदरगुहा में प्रवेश करती है और अन्त में आमाशय में खुलती है।
4. आमाशय (Stomach)-यह आहारनाल का सबसे चौडा थैलेनुमा पेशीय भाग है जिसकी आकृति ‘J’ के समान होती है। आमाशय में तीन भाग पाये जाते हैं-
- जठरागम भाग
- जठरनिर्गमी भाग
- फंडिस भाग। आमाशय भोजन को पचाने का कार्य करता है।
5. छोटी आँत (Small Intestine)-आमाशय पाइलोरिक कपाट द्वारा छोटी आँत में खुलता है। मानव में इसकी लम्बाई सात मीटर होती हैं। इस भाग में भोजन का सर्वाधिक पाचन तथा अवशोषण होता है। छोटी आँत में निम्न तीन भाग पाये जाते हैं.
- ग्रहणी (Duodenum)-यह छोटी आँत का प्रारम्भिक भाग है। इसका आकार U के समान होता है जो भोजन के रासायनिक पाचन (एंजाइमों द्वारा) में सबसे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- अग्रक्षुद्रदांत्र (Jejunum)-यह लम्बा संकरा एवं नलिकाकार भाग है। मुख्यतया अवशोषण का कार्य करता है।
- इलियम (Illeum)-यह आंत्र का शेष भाग है। यह पित्त लवण व विटामिन्स का अवशोषण करता है।
6. बेड़ी आँत (Large Intestine)-इलियम पीछे की ओर बड़ी आँत में खुलती है। बड़ी आँत तीन भागों में विभक्त होती है-
- अंधनाल
- वृहदान्त्र
- मलाशय। इसका मुख्य कार्य जल, खनिज लवणों का अवशोषण तथा अपचित भोजन को मल द्वार से उत्सर्जित करना है।
II. पाचक ग्रन्थियाँ (Digestive glands)-निम्न पाचक ग्रन्थियाँ हैं
1. लार ग्रन्थियाँ (Salivary glands)-तीन जोड़ी लार ग्रन्थियाँ लार स्रावित करती हैं जिनमें स्टार्च को माल्टोज शर्करा में बदलने वाला टायलिन एंजाइम उपस्थित होता है।
2. यकृत (Liver)-पित्त का निर्माण करता है। पित्त, पित्ताशय में संग्रहित रहता है। यह वसा के इमल्सीकरण का कार्य करता है अतः वसा के पाचन में सहायक है।
3. अग्नाशय (Pancreas)-प्रोटीन, वसा व कार्बोहाइड्रेट पाचक एंजाइमों का स्राव करती है। अग्नाशयी रस, पित्त रस के साथ ग्रहणी में पहुँचता है।
एंजाइमों का महत्त्व-मनुष्य में लार ग्रन्थियाँ (Salivary glands), यकृत (Liver) एवं अग्नाशय (Pancreases) ग्रन्थियाँ हैं। लार ग्रन्थियाँ भोजन को निगलने हेतु चिकनाई प्रदान करती हैं, साथ ही स्टार्च के पाचन हेतु एपाइलेज नामक पाचक एन्जाइम का स्रावण किया जाता है। यकृत द्वारा प्रमुख रूप से पित्त रस का स्रावण किया जाता है। यह वसा का पायसीकरण करने में सहायता करता है। यकृत शरीर की सबसे बड़ी पाचन ग्रन्थि है। यह कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं प्रोटीन के उपापचय (metabolism) में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। अग्नाशय विभिन्न प्रकार के एन्जाइम का स्रावण करता है, एमाइलेज, ट्रिप्सिन, काइमोट्रिप्सिन आदि जो कि भोजन के पाचन में सहायक है।
आमाशय के जठर रस में पेप्पसीन व रेनिन एन्जाइम होते हैं जो प्रोटीन व दुध की प्रोटीन को पचाने में सहायता करता है। इसी प्रकार आंत्रीय रस में पाये जाने वाले एन्जाइम माल्टोज, लैक्टेज सुक्रेज, लाइपेज सुक्रेज, लाइपेज न्यूक्लिएज, डाइपेप्टाइडेज, फोस्फोटेज आदि के द्वारा पोषक पदार्थों का पाचन किया जाता है।
प्रश्न 66.
मानव श्वसन तंत्र में श्वासनली, ब्रोन्किओल, फेफड़े तथा श्वसन मांसपेशियों का क्या महत्त्व है? समझाइए।
उत्तर-
श्वसन तन्त्र में श्वासनली, ब्रोन्किओल, फेफड़े तथा श्वसन मांसपेशियों का अग्रलिखित महत्त्व है
श्वासनली (Trachea)-श्वासनली कूटस्तरीय पक्ष्माभी स्तम्भाकार उपकला द्वारा रेखित C-आकार के उपास्थि छल्ले से बनी होती है। ये छल्ले श्वास नली को आपस में चिपकने से रोकते हैं तथा इसे हमेशा खुला रखते हैं। यह करीब 5 इंच लम्बी होती है। यह कंठ से प्रारम्भ होकर गर्दन से होती हुई डायफ्राम को भेदकर वक्ष गुहा तक फैली रहती है। श्वासनली की भीतरी श्लेष्मा कला श्लेष्म स्रावित करती रहती है। यह दीवार के भीतरी स्तर को नम व लसदार बनाये रखती है जो धूल, कण व रोगाणुओं को रोकती है।
ब्रोन्किओल (Bronchiole)-श्वासनली वक्षगुहा में दो भागों में बँट जाती है। प्रत्येक शाखा को क्रमशः दायीं-बायीं श्वसनी (Bronchus) कहते हैं। प्रत्येक श्वसनी दोनों ओर के फेफड़े में प्रवेश करती है। फेफड़ों में श्वसनी के प्रवेश के पश्चात् यह पतली-पतली शाखाओं में बँट जाती है। इन शाखाओं को श्वसनिकाएँ या ब्रोन्किओल्स कहते हैं। श्वसनी तथा ब्रोन्किओल्स मिलकर एक वृक्षनुमा संरचना बनाते हैं, जो बहुत-सी शाखाओं में विभक्त होती है। इन शाखाओं के अन्तिम छोर पर कूपिकाएँ (alveoli) पाये जाते हैं। गैसों का विनिमय इन कूपिकाओं के माध्यम से होता है।
फेफड़े (Lungs)-फेफड़े लचीले, कोमल, हल्के गुलाबी रंग के होते हैं। ये एक जोड़ी होते हैं–बायां फेफड़ा व दायां फेफड़ा। बायां फेफड़ा दो पाली में तथा दायां फेफड़ा तीन पालियों से निर्मित होता है। प्रत्येक फेफड़ा स्पंजी ऊतकों से बना होता है, जिसमें कई केशिकाएँ पाई जाती हैं। कूपिका एक कपनुमा संरचना होती है, जो सीमान्त ब्रोन्किओल के आखिरी सिरे पर पाई जाती हैं। ये असंख्य केशिकाओं से घिरा होता है । कृपिका में शल्की उपकला की पंक्तियाँ पाई जाती हैं जो कोशिका में प्रवाहित रुधिर से गैसों के विनिमय में मदद करती हैं।
श्वसन मांसपेशियाँ-फेफड़ों में गैसों के विनिमय हेतु मांसपेशियों की आवश्यकता होती है। ये पेशियाँ श्वास को लेने व छोड़ने में सहायता करती हैं। मुख्य रूप से श्वसन के लिए मध्य पट/डायफ्राम उत्तरदायी है। डायफ्राम कंकाल पेशी से बनी हुई एक पतली चादरनुमा संरचना है जो वक्षस्थल की सतह पर पाई जाती है। डायफ्राम के संकुचन से वायु नासिका से होती हुई फेफड़ों में प्रवेश करती है तथा शिथिलन से वायु फेफड़ों के बाहर निकलती है। इसके अलावा पसलियों में विशेष प्रकार की मांसपेशी पाई जाती है, जिसे इन्टरकोस्टल पेशियाँ (Intercostal muscles) कहते हैं, जो डायफ्राम के संकुचन व शिथिलन में सहायता करती हैं।
प्रश्न 67.
रक्त क्या होता है? रक्त के विभिन्न घटकों की विवेचना करें तथा रक्त के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर-
रक्त एक तरल संयोजी ऊतक होता है। यह एक श्यान तरल है। जिसके दो भाग होते हैं-प्लाज्मा (Plasma) एवं रुधिर कोशिकाएँ। मनुष्य के अन्दर रुधिर का आयतन लगभग 5 लीटर होता है।
रक्त के घटक–रक्त के मुख्यत: दो भाग होते हैं-(1) प्लाज्मा (2) रुधिर कोशिकाएँ।
(1) प्लाज्मा (Plasma)-
रुधिर के तरल भाग को प्लाज्मा कहते हैं। यह हल्के पीले रंग का क्षारीय तरल होता है। रुधिर आयतन का 55% भाग प्लाज्मा होता है। इसमें 92% जल एवं 8% विभिन्न कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ घुलित या निलम्बित या कोलाइड रूप में पाये जाते हैं।
(2) रुधिर कोशिकाएँ-
ये निम्न तीन प्रकार की होती हैं
(अ) लाल रुधिर कोशिकाएँ (RBC)-इन्हें इरिथ्रोसाइट्स (Erythrocytes) भी कहते हैं। इनकी संख्या बहुत अधिक होती है। ये कुल रक्त कोशिकाओं का 99 प्रतिशत होती हैं। ये आकार में वृत्ताकार, डिस्कीरूपी, उभयावतल (Biconcave) एवं केन्द्रक रहित होती हैं। हीमोग्लोबिन के कारण रक्त का रंग लाल होता है। इनकी औसत आयु 120 दिन होती है।
(ब) श्वेत रक्त कोशिकाएँ (WBC)- इनका निर्माण लाल अस्थि मज्जा (Red bone marrow) से होता है। इन्हें ल्यूकोसाइट्स (Leucocytes) भी कहते हैं। इनमें हीमोग्लोबिन के अभाव के कारण तथा रंगहीन होने से इन्हें श्वेत रक्त कोशिकाएँ कहते हैं। इनमें केन्द्रक पाया जाता है इसलिए इसे वास्तविक कोशिकाएँ (True cells) कहते हैं। ये लाल रुधिर कोशिकाओं की अपेक्षा बड़ी, अनियमित एवं परिवर्तनशील आकार की परन्तु संख्या में बहुत कम होती हैं। ये कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं
(i) कणिकामय (Granulocytes)
(ii) कणिकाविहीन (Agranulocytes)
(i) कणिकामय श्वेत रक्ताण-ये तीन प्रकार की होती हैं
- न्यूट्रोफिल
- इओसिनोफिल
- बेसोफिल।
न्यूट्रोफिल कणिकामय श्वेत रुधिर रक्ताणुओं में इनकी संख्या सबसे अधिक होती है। ये सबसे अधिक सक्रिय एवं इनमें अमीबीय गति पाई जाती है।
(ii) कणिकाविहीन (Agranulocytes)-ये दो प्रकार की होती हैं
(a) मोनोसाइट
(b) लिम्फोसाइट।
(a) मोनोसाइट (Monocytes)-ये न्यूट्रोफिल्स की तरह शरीर में प्रवेश कर सूक्ष्म जीवों का अन्त:ग्रहण (Ingestion) कर भक्षण करती हैं।
(b) लिम्फोसाइट (Lymphocytes)-ये कोशिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं
- बी-लिम्फोसाइट
- ‘टी’ लिम्फोसाइट
- प्राकृतिक मारक कोशिकाएँ।
लिम्फोसाइट प्रतिरक्षा उत्पन्न करने वाली प्राथमिक कोशिकाएँ हैं।
मोनोसाइट महाभक्षक (Macrophage) कोशिका में बदल जाती है। मोनोसाइट, महाभक्षक तथा न्यूट्रोफिल मानव शरीर की प्रमुख भक्षक कोशिकाएँ हैं जो बाह्य प्रतिजनों का भक्षण करती हैं।
(स) बिम्बाणु (Platelets)-ये बहुत छोटे होते हैं। इनका निर्माण भी अस्थि मज्जा में होता है। रक्त में इनकी संख्या करीब 3 लाख प्रति घन मिमी. होती है। इनकी आकृति अनियमित होती है तथा केन्द्रक का अभाव होता है। इनका जीवनकाल 10 दिन का होता है। बिम्बाणु रुधिर के थक्का जमाने में सहायता करती है। इनको थ्रोम्बोसाइट भी कहते हैं।
रक्त का महत्त्व-रक्त प्राणियों के शरीर में निम्न कार्यों हेतु महत्त्वपूर्ण है
- RBC हीमोग्लोबिन द्वारा 0, व CO, का परिवहन करती है।
- रुधिर के द्वारा पचे हुए पोषक पदार्थों को शरीर के विभिन्न भागों तक ले जाया जाता है।
- रक्त समस्त शरीर का एकसमान ताप बनाये रखने में सहायता करता है।
- रक्त शरीर पर हुए चोटों व घावों को भरने में सहायता करता है।
- प्रतिरक्षण के कार्यों को संपादित करना।
- हार्मोन आदि को आवश्यकता के अनुरूप परिवहन करना।
- उत्सर्जी उत्पादों को शरीर से बाहर करना।
प्रश्न 68.
मानव में मूत्र निर्माण की प्रक्रिया की विवेचना करें। वृक्के की संरचना को समझाइये।
उत्तर-
मानव में मूत्र निर्माण (Urine formation)-नेफ्रॉन (Nephron) का मुख्य कार्य मूत्र निर्माण करना है। मूत्र का निर्माण तीन चरणों में सम्पादित होता है
(i) छानना/परानियंदन (Ultrafiltration)
(ii) चयनात्मक पुनः अवशोषण (Selective reabsorption)
(iii) स्रवण (Secretion)
(i) छानना/परानियंदन-ग्लोमेरुलसे में प्रवेश करने वाली अभिवाही धमनिका, उससे बाहर निकलने वाली अपवाही धमनिका से अधिक चौड़ी होती है। इसलिए जितना रुधिर ग्लोमेरुलस में प्रवेश करता है, निश्चित समय में उतना रुधिर बाहर नहीं निकल पाता। इसलिए केशिका गुच्छ में रुधिर का दबाव बढ़ जाता है। इस दाब के कारण प्रोटीन के अलावा रुधिर प्लाज्मा में घुले सभी पदार्थ छनकर बोमेन संपुट में पहुँच जाते हैं। बोमेन संपुट में पहुँचने वाला यह द्रव नेफ्रिक फिल्ट्रेट या वृक्क निस्वंद कहलाता है। रुधिर में घुले सभी लाभदायक एवं हानिकारक पदार्थ इस द्रव में होते हैं, इसलिए इसे प्रोटीन रहित छना हुआ प्लाज्मा भी कहते हैं।
(ii) चयनात्मक पुनः अवशोषण-नेफ्रिक फिल्ट्रेट द्रव बोमेन सम्पुट में से होकर वृक्क नलिका के अग्र भाग में पहुँचता है। इस भाग में ग्लूकोस, विटामिन, हार्मोन तथा अमोनिया आदि को रुधिर में पुनः अवशोषित कर लिया जाता है। ये अवशोषित पदार्थ नलिका के चारों ओर फैली कोशिकाओं के रुधिर में पहुँचते हैं। इनके अवशोषण से नेफ्रिक फिल्ट्रेट में पानी की सान्द्रता अधिक हो जाती है। अब जल भी परासरण विधि द्वारा रुधिर में पहुँच जाता है।
(iii) स्रवण-जब रुधिर वृक्क नलिका पर फैले कोशिका जाल से गुजरता है, तब उसके प्लाज्मा में बचे हुए उत्सर्जी पदार्थ पुनः नेफ्रिक फिल्ट्रेट में डाल दिए जाते हैं। इस अवशेष द्रव में केवल अपशिष्ट पदार्थ बचते हैं, जो मूत्र (Urine) कहलाता है। यह मूत्र मूत्राशय में संग्रहित होता है और आवश्यकता पड़ने पर मूत्राशय की पेशियों के संकुचन से मूत्र मार्ग द्वारा शरीर से बाहर निकल जाता है।
वृक्क संरचना-मनुष्य में एक जोड़ी वृक्क पाये जाते हैं। दोनों वृक्क उदरगुहा के पृष्ठ भाग में डायफ्राम के नीचे कशेरुक दण्ड के इधर-उधर स्थित होते हैं। वृक्क गहरे भूरे रंग एवं सेम के बीज की आकृति के होते हैं। अर्थात् इनका बाहरी भाग उभरा हुआ तथा भीतरी भाग दबा हुआ होता है, जिसके मध्य में एक छोटा-सा गड्ढा होता है। इस गड्ढे को हाइलम (Hilum) कहते हैं। हाइलम भाग से वृक्क धमनी प्रवेश करती है किन्तु वृक्क शिरा (Renal vein) एवं मूत्रवाहिनी । (Ureter) बाहर निकलती है। बायां वृक्क दाहिने वृक्क से थोड़ा ऊपर स्थित होता है। एवं दाहिने वृक्क से आकार में बड़ा होता है।
प्रत्येक वृक्क के दो भाग होते हैं-बाहरी भाग को वल्कुट (Cortex) तथा अन्दर वाले भाग को मध्यांश (Medula) कहते हैं। प्रत्येक वृक्क में लाखों महीन कुण्डलित नलिकाएँ पाई जाती हैं। इन नलिकाओं को वृक्क नलिकाएँ या नेफ्रॉन (Nephron) कहते हैं । यह वृक्क की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है। प्रत्येक नेफ्रॉन के दो भाग होते हैं-
- बोमन सम्पुट
- वृक्क नलिका।
प्रश्न 69.
नर जनन तंत्र का चित्र बनाइए। मानव में प्राथमिक जनन अंगों की क्रियाविधि बताइए।
उत्तर-
नर जनन तंत्र का चित्र
प्राथमिक जनन अंग (Primary reproductive organs)-(1) मानव में नर प्राथमिक जनन अंग वृषण (Testis) कहलाते हैं।
वृषण (Testis)-मानव में वृषण दो होते हैं। इनका रंग गुलाबी तथा आकृति में अण्डाकार होते हैं। दोनों वृषण उदरगुहा के बाहर एक थैली में स्थित होते हैं जिसे वृषण कोष (Scrotum) कहते हैं। वृषण में पाई जाने वाली नलिकाओं को शुक्रजनन नलिका (Seminiferous Tubules) कहते हैं। जो वृषण की इकाई है। वृषण में शुक्राणुओं का निर्माण होता है। इसके अतिरिक्त नर हार्मोन (टेस्टोस्टेरॉन) भी वृषण में बनता है जो लड़कों में यौवनावस्था के लक्षणों का नियंत्रण करता है।
(2) मादाओं में प्राथमिक लैंगिक अंग के तौर पर एक जोड़ी अण्डाशय (ovaries) पाए जाते हैं। अण्डाशय के दो प्रमुख कार्य होते हैं-प्रथम, यह मादा जनन कोशिकाओं (अंडाणु) का निर्माण करता है। द्वितीय, यह एक अंत:स्रावी ग्रन्थि के तौर पर दो हार्मोन का निर्माण करता है-एस्ट्रोजन (estrogen) तथा प्रोजेस्टेरोन (progesterone)। दोनों अण्डाशय उदरगुहा में वक्कों के नीचे श्रोणि भाग (pelvic region) में गर्भाशय के दोनों ओर उपस्थित होते हैं। प्रत्येक अंडाशय में असंख्य विशिष्ट संरचनाएँ जिन्हें अण्डाशयी पुटिकाएं (ovarian follicles) कहा जाता है, पाई जाती हैं। ये पुटिकाएं अण्डाणु निर्माण करती हैं। अण्डाणु परिपक्व होने के पश्चात् अंडाशय से निकलकर अंडवाहिनी (fallopian tubes) से होकर गर्भाशय तक पहुँचता है। अंडाशय से स्रावित हार्मोन स्त्रियों में होने वाले लैंगिक परिवर्तन, अंडाणु के निर्माण आदि कार्यों में मदद करते हैं।
प्रश्न 70.
तंत्रिका की संरचना को चित्र के माध्यम से समझाइए। हाइपोथैलेमस तथा पीयूष ग्रन्थि के महत्त्व को समझाइए।
उत्तर-
तन्त्रिका तन्त्र का निर्माण कोशिकाओं अथवा न्यूरोन्स (Neurons) द्वारा होता है। यह तन्त्रिका तन्त्र की संरचनात्मक एवं क्रियात्मक इकाई है।
तन्त्रिका कोशिका की संरचना (Structure of Nerve Cell)-यह तीन भागों से मिलकर बनी होती है|
(1) सोमा (Soma) अथवा कोशिकाकाय-यह कोशिका का प्रमुख भाग होता है, जिसमें एक केन्द्रक तथा कोशिका द्रव्य पाया जाता है। केन्द्रक में एक स्पष्ट केन्द्रिका (Nucleolus) होती है, जबकि कोशिका द्रव्य में निसेल कणिकाएँ (Nissl’s Granules) तथा न्यूरोफाइब्रिल्स (Neurofibrils) नामक सूक्ष्म तन्तु पाये जाते हैं।
(2) द्रुमाक्ष्य (Dendrone)-ये छोटे शाखित प्रवर्ध होते हैं, जो कोशिकाकाय की शाखाओं के तौर पर पाये जाते हैं। ये तन्तु उद्दीपनों को कोशिकाकाय की ओर भेजते हैं।
(3) तंत्रिकाक्ष (Axon)-यह एक लम्बा प्रवर्ध होता है जो सोमा से निकलता है। तंत्रिकाक्ष में संदेश सोमा से दूर चलते हैं। अपने दूरस्थ सिरे तन्त्रिकाक्ष शाखित हो जाता है। प्रत्येक शाखा के अन्तिम सिरे पर अवग्रथनी घुण्डी या सिनैप्टिक नोब (Synaptic knob) अथवा अन्तस्थ बटन (Terminal button) नामक सूक्ष्म विवर्धन पाया जाता है, जिसमें न्यूरोट्रांसमीटर नामक पदार्थ पाये जाते हैं, जो तन्त्रिका आवेगों के सम्प्रेषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। तंत्रिकाक्ष के माध्यम से आवेग न्यूरोन बाहर निकलते हैं।
एक न्यूरोन के द्रुमाक्ष्य के दूसरे न्यूरोन के तंत्रिकाक्ष से मिलने के स्थान को संधि स्थल या सिनैप्स कहते हैं। अर्थात् दो न्यूरोन्स के बीच वाले संधि स्थानों को युग्मानुबंधन या सिनैप्स कहते हैं।
हाइपोथैलेमस तथा पीयूष ग्रन्थि का महत्त्व-अन्त:स्रावी तन्त्र के द्वारा जो नियंत्रण स्थापित किया जाता है, उसमें हाइपोथैलेमस सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हाइपोथैलेमस मस्तिष्क के विभिन्न क्षेत्रों से सूचना एकत्रित कर इन सूचनाओं को विभिन्न स्रावों तथा तंत्रिकाओं द्वारा पीयूष ग्रन्थि तक पहुँचाती है।
पीयूष ग्रन्थि इन सूचनाओं के आधार पर अपने विभिन्न स्रावणों की सहायता से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से अन्य अन्त:स्रावी ग्रन्थियों की क्रियाओं को नियंत्रित करती है। ये ग्रन्थियाँ पीयूष ग्रन्थि के निर्देशानुसार भिन्न-भिन्न हार्मोन का स्रावण करती हैं। ये स्रावित हार्मोन मानव शरीर में अनेकों कार्य जैसे-वृद्धि, उपापचयी क्रियाएँ आदि सम्पादित तथा नियंत्रित करते हैं। हार्मोन लक्ष्य ऊतकों पर उपस्थित विशिष्ट प्रोटीन से जुड़कर अपना प्रभाव डालती है।