Class 10 Science Chapter 3 आनुवंशिकी

Chapter 3 आनुवंशिकी

 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर

बहुचयनात्मक प्रश्न
1. जेनेटिक्स शब्द किसने दिया?
(क) मेण्डल।
(ख) बेटसन
(ग) मॉर्गन
(घ) पुनेट

2. मेण्डल ने अपने प्रयोग किस पर किये?
(क) मीठा मटर
(ख) जंगली मटर
(ग) उद्यान मटर
(घ) उपरोक्त सभी

3. आनुवंशिकता एवं विभिन्नताओं के अध्ययन की शाखा को कहते हैं
(क) आनुवंशिकी
(ख) जीयोलोजी
(ग) वानिकी
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं

4. मटर की फली को हरा रंग कैसा लक्षण है?
(क) प्रभावी
(ख) अप्रभावी
(ग) अपूर्ण प्रभावी
(घ) सहप्रभावी

5. सामान्यतया किसी जीन के कितने युग्मविकल्पी होते हैं
(क) चार
(ख) तीन
(ग) दो
(घ) एक

6. मेण्डल ने कितने विपर्यासी लक्षणों के युग्म अपने प्रयोगों के लिए चुने
(क) 34
(ख) 2
(ग) 12
(घ) 7

7. जब F1 पीढी का संकरण किसी एक जनक से कराया जाता है तो उसे कहते हैं
(क) व्युत्क्रम क्रॉस
(ख) टेस्ट क्रॉस
(ग) संकरपूर्वज क्रॉस
(घ) उपरोक्त सभी

8. संकरण Tt x tt से प्राप्त सन्तति का अनुपात होगा
(क) 3 : 1
(ख) 1 : 1
(ग) 1 : 2 : 1
(घ) 2 : 1

9. मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए किस विपर्यासी लक्षण को नहीं चुना
(क) जड़ का रंग
(ख) पुष्प का रंग।
(ग) बीज का रंग
(घ) फली का रंग

10. एकसंकर संकरण की F2 पीढ़ी में कितने प्रकार के जीनोटाइप बनते हैं
(क) 2
(ख) 3
(ग) 4
(घ) 9

उत्तरमाला-
1. (ख)
2. (ग)
3. (क)
4. (क)
5. (ग)
6. (घ)
7. (ग)
8. (ख)
9. (क)
10. (ख)

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 11.
आनुवंशिकी का जनक किसे कहते हैं ?
उत्तर-
आनुवंशिकी का जनक ग्रेगर जॉन मेण्डल को कहते हैं।

प्रश्न 12.
मेण्डल ने अपने प्रयोग किस पौधे पर किये ?
उत्तर-
मेण्डल ने अपने प्रयोग उद्यान मटर (पाइसम सेटाइवम) पर किये।

प्रश्न 13.
प्रभावी लक्षण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
वह लक्षण जो F1 पीढ़ी में अपनी अभिव्यक्ति दर्शाता है, उसे प्रभावी लक्षण कहते हैं।

प्रश्न 14.
आनुवंशिक लक्षणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचरण क्या कहलाता है?
उत्तर-
आनुवंशिक लक्षणों का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में संचरण वंशागति (Heredity) कहलाता है।

प्रश्न 15.
मेण्डल के नियमों की पुनर्खाज किसने की?
उत्तर-
कार्ल कोरेन्स, एरिक वान शेरमेक एवं ह्यूगो डी ब्रीज ने मेण्डल के नियमों की पुनर्खाज की ।।

प्रश्न 16.
मेण्डल का पूरा नाम क्या है?
उत्तर-
मेण्डल का पूरा नाम ग्रेगर जॉन मेण्डल (Gregor John Mendal) है।

प्रश्न 17.
मेण्डल द्वारा प्रतिपादित नियमों के नाम लिखिये।
उत्तर-

  • प्रभाविता का नियम
  • पृथक्करण का नियम या युग्मकों की शुद्धता का नियम
  • स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम।

प्रश्न 18.
परीक्षण संकरण किसे कहते हैं ?
उत्तर-
वह क्रॉस जिसमें F1 पीढ़ी का संकरण अप्रभावी लक्षण प्ररूप वाले जनक के साथ किया जाता है, परीक्षण संकरण कहलाता है।

प्रश्न 19.
बाह्य संकरण से क्या समझते हैं ?
उत्तर-
बाह्य संकरण में F1 पीढ़ी के पादप (Tt) का संकरण अपने प्रभावी जनक (TT) से करवाया जाता है। इस संकरण से प्राप्त संतति में सभी पौधे लम्बे प्राप्त होते हैं जिनमें 50% समयुग्मजी लम्बे (TT) तथा 50% विषम युग्मजी लम्बे (Tt) पौधे प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 20.
मेण्डल के किस नियम को एकसंकर संकरण से नहीं समझाया जा सकता है?
उत्तर-
स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of Independent assortment) ।

लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 21.
लक्षणप्ररूप व जीनप्ररूप में अंतर लिखिये।
उत्तर-
लक्षणप्ररूप व जीनप्ररूप में अन्तर
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प्रश्न 22.
द्विसंकर संकरण को समझाइये।
उत्तर-
द्विसंकर संकरण (Dihybrid Cross)-वह क्रॉस जिसमें दो लक्षणों की वंशागति का अध्ययन किया जाता है, उसे द्विसंकर क्रॉस कहते हैं।

मेण्डल ने दो युग्मविकल्पी लक्षणों जैसे गोल व पीले (RRYY) बीज वाले पादप और झुरींदार व हरे (rryy) बीज वाले पादप में क्रॉस करवाया। तब F1 पीढ़ी में गोल व पीले (RrYy) बीज वाले पादप उत्पन्न हुये। F1 पीढ़ी को स्वपरागित करवाने से उत्पन्न F2 पीढ़ी में चार प्रकार के पौधे प्राप्त होते हैं। अर्थात् F2 पीढ़ी में लक्षणों के चार प्रकार के संयोजन बनते हैं। दो संयोजन दोनों जनकों के जैसे (गोल-पीले तथा झुरींदार-हरे) तथा दो नये संयोजन (गोल-हरे तथा झुरींदार-पीले) बनते हैं। इस प्रकार द्विसंकर क्रास की F2 पीढ़ी के पौधों का लक्षणप्ररूप अनुपात 9: 3 : 3 : 1 का अनुपात अर्थात् 9 गोल व पीले बीज वाले पादप, 3 झुर्सदार व पीले बीज वाले पादप, 3 गोल व हरे बीज वाले पादप तथा 1 झुरींदार व हरे बीज वाला पादप बना।।

प्रश्न 23.
मेण्डल की सफलता के कारण लिखिये।
उत्तर-
मेण्डल की सफलता के कारण निम्न हैं

  • मेण्डल ने एक समय में एक ही लक्षण की वशांगति का अध्ययन किया।
  • मेण्डल ने अपने संकरण प्रयोगों के सभी आँकड़ों का सावधानीपूर्वक सांख्यिकीय विश्लेषण (Statistical analysis) किया।
  • मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए पादप का चुनाव भी सावधानीपूर्वक किया।

प्रश्न 24.
मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधे को ही क्यों चुना?
उत्तर-
मेण्डल ने अपने प्रयोग के लिए मटर के पौधे का चयन निम्न कारणों से किया–

  • एकवर्षीय पादप होने के कारण कम समय में अनेक पीढ़ियों का अध्ययन किया जा सकता है।
  • द्विलिंगी पुष्प (Bisexual flowers) होने के कारण स्वपरागण (Self pollination) के द्वारा समयुग्मजी (Homozygous) पादप अथवा शुद्ध वंशक्रम (Pure line) सरलता से प्राप्त किया जा सकता है।
  • विपुंसन (Emasculation) विधि द्वारा कृत्रिम परपरागण आसानी से किया जा सकता है।
  • मटर के पौधे में विभिन्न लक्षणों के वैकल्पिक लक्षण मिलते हैं जैसे लम्बे व बौने, गोल व झुरीदार बीज आदि।

प्रश्न 25.
मेण्डल का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिये।
उत्तर-
मेण्डल का जीवन परिचय-मेण्डल का जन्म 22 जुलाई, 1822 को आस्ट्रिया के एक कृषक परिवार में हेन्जनडॉर्फ प्रान्त के सिलिसियन गाँव में हुआ। स्कूली शिक्षा व दर्शनशास्त्र का अध्ययन करने के बाद 1843 में आस्ट्रिया के ब्रुन शहर में पादरी बने तथा उन्हें ग्रेगर की उपाधि दी गई। वियना विश्वविद्यालय में विज्ञान व गणित का अध्ययन करने के बाद फिर से वहीं आकर विज्ञान विषय के शिक्षक बने। सन् 1856 से 1863 तक चर्च के उद्यान में मटर के पौधों पर कार्य किया तथा 1865 में निष्कर्षों को ब्रुन सोसाइटी ऑफ नेचुरल हिस्ट्री के समक्ष प्रस्तुत किया। इन्होंने अपने निष्कर्षों के आधार पर आनुवंशिकी नियमों को बताया। इसे ही आज मेण्डलवाद कहते हैं। 1866 में इन प्रयोगों को सोसायटी की वार्षिकी में पादप संकरण का प्रयोग नामक शीर्षक से प्रकाशित किया गया। 6 जनवरी 1884 में इनकी मृत्यु हो गयी। सन् 1900 में ह्यूगो डी ब्रीज, कार्ल कोरेन्स (जर्मनी) एवं शरमैक (आस्ट्रिया) द्वारा पृथक् वे स्वतंत्र रूप से कार्यों का निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया। ये तीनों उसी निष्कर्ष पर पहुँचे जो मेण्डल ने सन् 1865 में ही प्रस्तुत करे दिया था। इसके पश्चात् मेण्डल के कार्यों को महत्त्व प्राप्त हुआ।

प्रश्न 26.
मेण्डल के प्रभाविता नियम को समझाइये।।
उत्तर-
प्रभाविता को नियम-जब दो शुद्ध गुणों (लम्बा व बौना) का संकरण होता है तो प्रथम पीढ़ी में केवल प्रभावी गुण (लम्बा) प्रकट होता है व अप्रभावी गुण (बौनापन) अभिव्यक्त नहीं हो पाता है। इसे प्रभाविता का नियम कहते हैं। लम्बापन प्रभावी गुण है एवं बौनापन अप्रभावी गुण है। देखिए नीचे चित्र में।
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 3 आनुवंशिकी 26
F1 पीढ़ी में सभी पौधे (100%) लम्बे (Tt) प्राप्त होते हैं।

प्रश्न 27.
मेण्डल के आनुवंशिकता नियमों का महत्त्व लिखिये।
उत्तर-
मेण्डल के नियमों का महत्त्व निम्नलिखित है

  • मेण्डल के नियमों की सहायता से उन्नत व संकर प्रजातियों को उत्पन्न किया जाता है।
  • इन प्रजातियों में अधिक उत्पादन, अधिक अनुकूलनती, रोधक क्षमता आदि गुण पाये जाते हैं।
  • प्रजनन विज्ञान में मेण्डल के नियमों का बड़ा योगदान है।
  • असाध्य रोगों की पहचान करने व उपचार में सहायक है।
  • मेण्डल के कार्यों से जैव तकनीक और जैव अभियांत्रिकी को भी बल मिला।
  • सुजननिकी में मानव एवं अन्य जीवों में जीवन स्तर गुणवत्ता व श्रेष्ठ जर्मप्लाज्म संरक्षण को बढ़ावा देने में मेण्डल के नियम उपयोगी हैं।
  • सजीवों में प्रभाविता के लक्षण का पाया जाना अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है। क्योंकि अनेक हानिकारक एवं घातक जीन अप्रभावी होने के कारण प्रभावी जीन की उपस्थिति में अपने आपको अभिव्यक्त नहीं कर पाते हैं। निबन्धात्मक प्रश्न

प्रश्न 28.
मेण्डल के पृथक्करण के नियम को उदाहरण सहित समझाइये।
उत्तर-
पृथक्करण का नियम (Law of Segregation)-इस नियम के अनुसार जब दो विपरीत लक्षणों वाले शुद्ध नस्ल के एक ही जाति के दो पौधों या जनकों के बीच संकरण कराया जाता है, तो उनकी F1 पीढ़ी में संकरे पौधे प्राप्त होते हैं और सिर्फ प्रभावी लक्षण को ही प्रकट करते हैं। किन्तु इनकी दूसरी पीढ़ी (F2) के पौधों में परस्पर विपरीत लक्षणों का एक निश्चित अनुपात (1 : 2 : 1) में पृथक्करण हो जाता है। क्योंकि प्रथम पीढ़ी के साथ-साथ रहने पर भी गुणों का आपस में मिश्रण नहीं होता है और युग्मक निर्माण के समय गुण पृथक् हो जाते हैं और युग्मकों की शुद्धता बनी रहती है, इसलिए इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of Purity of gamets) भी कहते हैं। यह नियम एकसंकर संकरण के परिणामों पर आधारित है।

इस शुद्धता के नियम को निम्न प्रकार से समझा सकते हैं। जब दो पौधों को क्रॉस कराया गया (TT x tt) तब F1 के लम्बे पौधों में दोनों के जीन उपस्थित थे, परन्तु F2 में यह जीन या लक्षण पृथक् होकर पुनः लम्बे व बौने पौधे बनाते हैं। देखिये नीचे चित्र में।।
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 3 आनुवंशिकी 28

प्रश्न 29.
मेण्डलवाद क्या है? स्वतन्त्र अपव्यूहन के नियम का विस्तार से वर्णन कीजिये।
उत्तर-
मेण्डलवाद-मेण्डल द्वारा उद्यान मटर पर किये गये प्रयोगों के परिणाम के आधार पर आनुवंशिकता के नियमों का प्रतिपादन किया गया, जिन्हें मेण्डलवाद भी कहते हैं।

स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम-मेण्डल का यह नियम द्विसंकर संकरण के परिणामों पर आधारित है। इस नियम के अनुसार, यदि दो या दो से अधिक विपर्यासी लक्षणों युक्त पादपों का संकरण कराया जाता है तो एक लक्षण की वंशागति का दूसरे लक्षण की वंशागति पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है अर्थात् प्रत्येक लक्षण के युग्मविकल्पी केवल पृथक ही नहीं होते अपितु विभिन्न लक्षणों के युग्मविकल्पी (Alleles) एक-दूसरे के प्रति स्वतन्त्र रूप से व्यवहार करते हैं या स्वतंत्र रूप से अपव्यूहित होते हैं। अतः इसे स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम (Law of independent assortment) कहते हैं।

उदाहरण-यदि मटर के समयुग्मजी पीले गोलाकार (YYRR) बीज वाले पौधे का हरे, झुर्रादार (yyr) बीज वाले पौधे से संकरण कराया जाता है तो F1 पीढ़ी में सभी पौधे पीले गोलाकार (Yellow rounded) बीज (YyRr) वाले प्राप्त होते

F1 पीढ़ी में परस्पर स्वपरागण कराने पर प्राप्त F2 पीढ़ी में लक्षणप्ररूप चार प्रकार के अनुपात 9 : 3 : 3 : 1. में प्राप्त होते हैं तथा जीन प्ररूप नौ प्रकार के अनुपात 1 : 2 : 2 : 4 : 1 : 2 : 1 : 2 : 1 में प्राप्त होते हैं।
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 3 आनुवंशिकी 29
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 3 आनुवंशिकी 29.1

इस प्रकार इस प्रयोग से स्पष्ट होता है कि बीजों के रंग एवं आकृति की वंशानुगत पीढ़ी एक-दूसरे से प्रभावित नहीं होती। ये लक्षण स्वतंत्र रूप से वंशानुगत होते हैं। इसलिए इसे मेंडल का ‘स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम’ कहते हैं।

प्रश्न 30.
मेण्डल के आनुवंशिकता के नियमों को समझाइये।
उत्तर-
मेण्डल ने मटर पर कार्य करते हुए वंशागति के सिद्धान्तों को बताया, जिन्हें मेण्डल के आनुवंशिकता के नियम के नाम से जाना जाता है।

1. प्रभाविता का नियम (Law of Dominance)- जब दो शुद्ध गुणों (लम्बा व बौना) का संकरण होता है तो प्रथम पीढ़ी में केवल प्रभावी गुण (लम्बा) प्रकट होता है व अप्रभावी गुण (बौना) अभिव्यक्त नहीं होता है। इसे प्रभाविता का नियम कहते हैं। लम्बापन प्रभावी गुण है एवं बौनापन अप्रभावी गुण है। देखिये नीचे चित्र में।
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 3 आनुवंशिकी 30
F1 पीढ़ी में सभी पौधे (100%) लम्बे (Tt) प्राप्त होते हैं।

2. पृथक्करण का नियम (Law of Segregation)- इस नियम के अनुसार जब दो विपरीत लक्षणों वाले शुद्ध नस्ल के एक ही जाति के दो पौधों या जनकों के बीच संकरण कराया जाता है, तो उनकी F1 पीढ़ी में संकर पौधे प्राप्त होते हैं और सिर्फ प्रभावी लक्षण को ही प्रकट करते हैं। किन्तु इनकी दूसरी पीढ़ी (F2) के पौधों में परस्पर विपरीत लक्षणों का एक निश्चित अनुपात (1 : 2 : 1) में पृथक्करण हो जाता है क्योंकि प्रथम पीढ़ी के साथ-साथ रहने पर भी गुणों का आपस में मिश्रण नहीं होता है और युग्मक निर्माण के समय गुण पृथक् हो जाते हैं और युग्मकों की शुद्धता बनी रहती है, इसलिए इसे युग्मकों की शुद्धता का नियम (Law of purity at gamets) भी कहते हैं। यह नियम एक संकर संकरण के परिणामों पर आधारित है।

इस शुद्धता के नियम को निम्न प्रकार से समझा सकते हैं। जब दो पौधों को क्रॉस कराया गया (TT x tt) तब F1 के लम्बे पौधों में दोनों के जीन उपस्थित थे, परन्तु F2 में यह जीन या लक्षण पृथक् होकर पुनः लम्बे व बौने पौधे बनाते हैं। देखिये नीचे चित्र में।
RBSE Solutions for Class 10 Science Chapter 3 आनुवंशिकी 30.1
3. स्वतंत्र अपव्यूहन का नियम (Law of independent assortment)- इस नियम के अनुसार जब दो या दो से अधिक जोड़ी विपरीत लक्षणों वाले पौधे में क्रॉस (संकरण) करवाया जाता है तो समस्त लक्षणों की वंशागत स्वतन्त्र रूप से होती है, अर्थात् एक लक्षण की वंशागति पर दूसरे लक्षण की उपस्थिति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है। अतः इसे स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम कहते हैं।

जब समयुग्मजी पीले गोलाकार (YYRR) बीजों वाले पौधे को समयुग्मजी हरे झुर्रादार (yyrr) बीजों वाले पौधे से संकरण कराया जाता है तो F1 पीढी में विषमयुग्मजी पीले गोलाकार (YyRr) लक्षण प्रकट होते हैं । झुर्सदार व हरा लक्षण अप्रभावी रहता है।

F1 पीढ़ी में परस्पर स्वपरागण करने पर F2 पीढ़ी प्राप्त होती है जिसमें फीनोटाइप (लक्षण प्ररूप) 9 : 3 : 3 : 1 के अनुपात में प्राप्त होता है। इसे द्विसंकरण क्रॉस भी कहते हैं। इन्हें इस प्रकार से लिखा जा सकता है

9 पीले-गोल : 3 पीले-झुरींदार : 3 हरे-गोल : 1 हरा-झुरींदार
जीनी प्ररूपी अनुपात-1 : 2 : 2 : 4 : 1 : 2 : 1 : 2 : 1
लक्षण प्ररूपी अनुपात-9: 3 : 3 : 1
चित्र हेतु देखिये पिछले प्रश्न 29 का उत्तर।


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