Chapter 19 जैवविविधता एवं इसका संरक्षण
पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तर
बहुचयनात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
किसी पारिस्थितिकीय तंत्र के संतुलन की मापक इकाई है
(क) प्रजाति
(ख) जैवविविधता
(ग) जन्तु विविधता
(घ) उक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 2.
विश्व में कृषि सहयोग के हिसाब से भारत कौन से स्थान पर है?
(क) आठवें
(ख) नौवें
(ग) सातवें
(घ) दसवें
प्रश्न 3.
विश्व में कुल कितने जैव विविधता तप्त स्थल (Biodiversity hotspot) हैं?
(क) 25
(ख) 20
(ग) 34
(घ) 33
प्रश्न 4.
भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव कौन सा है?
(क) गांगेय डॉल्फिन
(ख) व्हेल
(ग) स्टार फिश
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 5.
निम्न में से कौन सा जैव विविधता तप्त स्थल (Biodiversity hotspot) भारतीय क्षेत्र में आता है?
(क) मेडागास्कर के द्वीप समूह
(ख) पूर्वी मलेशियाई द्वीप समूह
(ग) इंडो-बर्मा
(घ) उपरोक्त में से कोई नहीं
प्रश्न 6.
अंतर्राष्ट्रीय जैवविविधता दिवस कब मनाया जाता है?
(क) 21 मई
(ख) 23 मई
(ग) 22 मई
(घ) 24 मई
प्रश्न 7.
अंतर्राष्ट्रीय जैवविविधता वर्ष कब मनाया गया?
(क) 2012
(ख) 2010
(ग) 2011
(घ) 2009
प्रश्न 8.
आज लगभग कितनी जन्तु प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं?
(क) 8000
(ख) 2000
(ग) 2800
(घ) 4000
प्रश्न 9.
निम्न में से कौन-सा जीव भ्रामक धारणाओं के कारण ग्रामीणों के द्वारा मारा जाता रहा है?
(क) गोयरा।
(ख) गोडावण
(ग) मेंढक
(घ) डोडो
प्रश्न 10.
1992 में पृथ्वी सम्मेलन कहाँ हुआ था?
(क) नई दिल्ली
(ख) पेरिस
(ग) पर्थ
(घ) रियो-डि-जिनेरियो
उत्तरमाला-
1. (क)
2. (ग)
3. (ग)
4. (क)
5. (ग)
6. (ग)
7. (ख)
8. (घ)
9. (क)
10 (घ)
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 11.
जैवविविधता के तीन स्तर लिखिए।
उत्तर-
- प्रजाति विविधता
- आनुवंशिक विविधता तथा
- पारिस्थितिक तंत्र विविधता।
प्रश्न 12.
वैज्ञानिक पृथ्वी पर पाए जाने वाली कितनी प्रतिशत प्रजातियाँ पहचान पाए हैं?
उत्तर-
17 से 20 लाख प्रजातियों को ही पहचान पाये हैं।
प्रश्न 13.
जैव विविधता तप्त स्थल (Biodiversity hotspot) क्या होते हैं ?
उत्तर-
ऐसे क्षेत्र जहाँ बहुत अधिक जैवविविधता होती है, जैवविविधता तप्त स्थल होते हैं।
प्रश्न 14.
भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव कौनसा है?
उत्तर-
गांगेय डाल्फिन भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव है।
प्रश्न 15.
भारत के जैव विविधता तप्त स्थल (Biodiversity hotspot) के नाम लिखो।
उत्तर-
भारत के जैवविविधता तप्त स्थल निम्न प्रकार से हैं-
- पूर्वी हिमालय
- पश्चिमी घाट
- इंडो-बर्मा जैव विविधता तप्त स्थल
प्रश्न 16.
दो स्थानबद्ध प्रजातियों के नाम लिखो।
उत्तर-
- लेमूर तथा
- डोडो पक्षी
प्रश्न 17.
दो संकटग्रस्ट प्रजातियों के नाम लिखो।
उत्तर-
- चीता तथा
- बघेरा।
प्रश्न 18.
भारत का विश्व में जैव विविधता स्तर पर कौनसा स्थान है?
उत्तर-
जैवविविधता की दृष्टि से भारत विश्व के 17 वृहद् जैवविविधता वाले देशों में है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 19.
जैवविविधता का अर्थ समझाइये।
उत्तर-
जैवविविधता दो शब्दों से मिलकर बना है-जैव अर्थात् जीवन तथा विविधता अर्थात् विभिन्नता। अतः जैवविविधता का अर्थ है पृथ्वी पर पाये जाने वाले जीवधारियों के बीच पाई जाने वाली विभिन्नता । जीवधारियों में पेड़-पौधे तथा जन्तु सभी सम्मिलित हैं अतः जैवविविधता एक व्यापक शब्द है । इसका विस्तार अतिसूक्ष्म लाइकेन से लेकर विशालकाल वृक्ष बरगद तथा रेडवुड, अतिसूक्ष्म जलीय प्लेंकटोन से लेकर विशालकाय व्हेल तथा अतिसूक्ष्म जीवाणुओं से लेकर विशालकाय हाथी तक पाया जाता है।
प्रश्न 20.
पूर्वी हिमालय बायोडाइवर्सिटी हॉटस्पॉट में पाए जाने वाली जैव विविधता पर लघु लेख लिखिए।
उत्तर-
इसके अन्तर्गत पूर्वी हिमालय को असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल राज्यों का क्षेत्र आता है। हिमालय पर्वत में असीम जैवविविधता है। यहाँ के 7,50,000 वर्ग किमी. क्षेत्र में फैले हिमालय के जैवविविधता तप्त स्थल क्षेत्र में वनस्पतियों की लगभग 1000 प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें से 3,160 प्रजातियाँ स्थानबद्ध (endemic) हैं। प्राणियों में 300 प्रजातियाँ स्तनधारी की हैं। जिनमें से 12 प्रजातियाँ स्थानबद्ध व 997 प्रजातियाँ पक्षियों की हैं। इसके अतिरिक्त सरिसृपों, उभयचरों व मछलियों की भी अनेक प्रजातियाँ हैं। यहाँ के प्रमुख जीव हिमालयी तहर, सुनहरा लंगूर, हुलोक गिब्बन, पिग्मी हॉग, उड़न गिलहरी, हिम तेंदुआ, ताकिन, गांगेय डॉल्फिन आदि हैं।
प्रश्न 21.
इंडो-बर्मा बायोडाइवर्सिटी हॉटस्पॉट में कौन-कौन से देश सम्मिलित हैं?
उत्तर-
उक्त बायोडाइवर्सिटी में उष्णकटिबंधीय पूर्वी एशिया में चीन, भारत, म्यांमार, वियतनाम, थाइलैण्ड, कम्बोडिया तथा मलेशिया देश हैं।
प्रश्न 22.
विदेशी प्रजातियों के आक्रमण का जैव-विविधता पर क्या प्रभाव होता है?
उत्तर-
यह देखा गया है कि विदेशी प्रजातियों के आने से स्थानीय प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है तथा यह सम्पूर्ण पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन उत्पन्न कर देते हैं। जैसे कुछ पादप प्रजातियों को सौन्दर्गीकरण के लिए हमारे देश में लाया गया, उदा. लैन्टाना तथा जलकुम्भी । वस्तुतः लैन्टाना को अंग्रेज 1807 में भारत लाये तथा इसे कोलकाता के वनस्पति उद्यान में लगाया था किन्तु यह पादप धीरे-धीरे समूचे उपमहाद्वीप में फैल गया। आज यह पौधा स्थानीय जैवविविधता के लिए संकट बना है क्योंकि यह आसपास अन्य पौधों को उगने नहीं देता व न ही इसे जानवर खाते हैं। इसी प्रकार जलकुम्भी को भी ब्राजील से लाया गया जो वर्तमान में भारत के सभी जलस्रोतों में फैल चुकी है।
जलकुम्भी के अनियंत्रित विस्तार से यह सूर्य के प्रकाश को रोककर जल में विद्यमान सभी पौधों को नष्ट कर देती है तथा अन्य जलीय जीवों को ऑक्सीजन कम मिलने से वे मरने लगते हैं। अमेरिका से आयातित किये गये गेहूं में आई गाजर घास (Partheniuin) भी इसका उदाहरण है। यह 1950 में अमेरिका से आयात किये गये गेहूँ के साथ भारत में आई। गाजर घास विश्व के सबसे खतरनाक खरपतवारों में से एक है। इसे जानवर तक नहीं खाते हैं। इसमें अनेक ऐसे रासायनिक पदार्थ होते हैं जो मानव में एलर्जी रोग उत्पन्न करते हैं। यह भी स्थानीय जैवविविधता के लिये भारी संकट है।
प्रश्न 23.
‘मेंढक की टांगों के निर्यात का जैवविविधता पर प्रतिकूल प्रभाव हुआ है।” इस कथन को समझाइये।
उत्तर-
यह एक प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित विदोहन का उदाहरण है। मानव ने व्यावसायिक लाभ के लिए सजीवों का अत्यधिक वे अनियंत्रित दोहन किया है। उदाहरणस्वरूप, यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका में मेंढक की टांगों का उपयोग खाने में स्वाद बढ़ाने के लिए होता है। भारत सहित अनेक एशियाई देश मेंढक की टाँगों का निर्यात करते हैं। सन् 1983 में भारत ने 3650 मीट्रिक टन मेंढक की टाँगें निर्यात कीं जिसके कारण जंगलों में मेंढक की संख्या कम होती गई तथा ऐसे कीट जिन्हें मेंढक खाते थे, की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि हो गई। स्थिति की गम्भीरता को देखते हुए 1 अप्रैल, 1987 से भारत सरकार को मेंढकों के व्यवसाय पर प्रतिबंध लगाना पड़ा।
प्रश्न 24.
जैवविविधता संरक्षण हेतु राष्ट्रीय स्तर पर हुए प्रयासों को लिखिये।।
उत्तर-
जैवविविधता पर अन्तर्राष्ट्रीय संधि सी.बी.डी. (Convention on Bio-diversity) के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को ध्यान में रखकर केन्द्र सरकार द्वारा वर्ष 2002 में जैवविविधता एक्ट बनाया गया, जिसके तीन मुख्य उद्देश्य निम्न प्रकार से हैं
- जैवविविधता का संरक्षण।
- जैवविविधता को ऐसा उपयोग जिससे यह लम्बे समय तक उपलब्ध रहे ।
- देश के जैविक संसाधनों के उपयोग से होने वाले लाभों का समान वितरण ताकि यह ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुँच सके।
उक्त उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु जैवविविधता एक्ट 2002 में त्रिस्तरीय संगठन का प्रावधान है-राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, राज्यों में जैवविविधता बोर्ड तथा स्थानीय स्तर पर जैवविविधता प्रबंध समितियाँ।
भारत में पर्यावरण, वन, जल, वायु एवं जैवविविधता कानूनों को एक ही दायरे में लाने के उद्देश्य से 2 जून, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण का गठन हुआ। इसका मुख्यालय भोपाल में है। उक्त कानूनों के अन्तर्गत अपील उच्च
न्यायालय के स्थान पर राष्ट्रीय हरित अधिकरण में की जायेगी जिससे इनसे सम्बन्धित विवादों का निष्पादन तेजी से होगा।
प्रश्न 25.
जैवविविधता संरक्षण के प्रकार लिखिए।
उत्तर-
जैवविविधता संरक्षण से तात्पर्य है कि जिनसे जीन्स, प्रजाति, आवास तथा ईको-सिस्टम का संरक्षण हो। जैवविविधता संरक्षण निम्न दो विधियों द्वारा किया जाता है
- स्वःस्थाने संरक्षण (In-situ conservation)-ऐसा संरक्षण जो प्राकृतिक आवास में ही मानव द्वारा प्रदत्त अनुरक्षण से किया जाता है, स्वःस्थाने संरक्षण कहलाता है। जिस संकटग्रस्त प्रजाति को संरक्षित करना होता है, उसके अनुसार चयनित प्राकृतिक आवास में ही अनुकूल परिस्थितियाँ एवं सुरक्षा उपलब्ध कराई जाती है। इसके अन्तर्गत जीवमण्डल रिजर्व, राष्ट्रीय उद्यान, अभयारण्य तथा संरक्षण रिजर्व आदि की स्थापना की जाती है।
- बहिस्थाने संरक्षण (Ex-situ Conservation)-इसमें प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास से बाहर कृत्रिम आवास में संरक्षण प्रदान किया जाता है। इसके लिए वानस्पतिक उद्यान, बीज बैंक, ऊतक संवर्धन प्रयोगशाला आदि की। स्थापना की जाती है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 26.
जैवविविधता के विभिन्न स्तर बताइये।
उत्तर-
जैवविविधता के निम्न तीन स्तर होते हैं|
प्रजाति विविधती Species diversity)-जीवों का इस प्रकार का समूह जिसके सदस्य दिखने के अन्दर एक जैसे हों तथा प्राकृतिक परिवेश में प्रजनन कर सन्तान पैदा करने की क्षमता रखते हों, उसे प्रजाति कहते हैं। किसी क्षेत्र विशेष में उपस्थित जीवों (पौधे व जन्तु) की विभिन्न प्रजातियों की कुल संख्या उस क्षेत्र की प्रजाति विविधता कहलाती है। जैवविविधता का सामान्य अर्थ प्रजाति विविधता से ही लगाया जाता है। यह किसी पारिस्थितिक तंत्र के संतुलन की मापन इकाई है। सूक्ष्मजीवों की संख्या तथा विविधता पृथ्वी पर पाये। जाने वाले अन्य जीवों की तुलना में कई गुणा अधिक है। केवल 1 ग्राम मृदा में 10 करोड़ जीवाणु तथा पचास हजार तक कवक हो सकती हैं।
आनुवंशिक विविधता (Genetic diversity)-एक ही प्रजाति के विभिन्न सदस्यों के मध्य आनुवंशिक इकाई जीन (Gene) के कारण पाये जाने वाली भिन्नता आनुवंशिक विविधता कहलाती है। इस प्रकार की विभिन्नता एक प्रजाति के विभिन्न जनसंख्या समूहों के बीच अथवा एक जनसंख्या के विभिन्न सदस्यों के मध्य पाई जाती है।
विश्व के विभिन्न पारिस्थितिक तंत्रों में एक प्रजाति जैसे चावल या हिरण या मेंढक का विभिन्न गुणों के साथ पाया जाना आनुवंशिक विविधता का ही उदाहरण है। यदि किसी प्रजाति के सदस्यों में अधिक आनुवंशिक विभिन्नता पाई जाती हो तो उसके विलुप्त होने का खतरा उतना ही कम होगा क्योंकि उसमें वातावरण के साथ अनुकूलन करने की क्षमता अधिक होगी। इसी विभिन्नता के फलस्वरूप एक प्रजाति के नये सदस्यों (किस्मों) का जन्म होता है।
पारिस्थितिक तंत्र विविधता (Ecosystem diversity)-किसी क्षेत्र विशेष के समस्त जीव-जन्तुओं की परस्पर तथा उनके पर्यावरण के विभिन्न अजैविक घटकों में अन्त:क्रियाओं से निर्मित तंत्र पारिस्थितिक तंत्र कहलाता है। इस पृथ्वी पर विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र पाये जाते हैं, जैसे-घास के मैदान, मरुस्थल, पहाड़, नम भूमि, नदी-घाटी, समुद्र, उष्ण कटिबन्धीय वन इत्यादि। इन पारिस्थितिक तंत्रों की अपनी भौगोलिक व पर्यावरणीय विशेषताएँ होती हैं, जिसके फलस्वरूप वहाँ पर पाये जाने वाले जीव-जन्तुओं व पादपों में भिन्नता होती है। इस विभिन्नता को ही पारिस्थितिक तंत्र की विविधता कहते हैं।
प्रश्न 27.
जैवविविधता के तप्त स्थलों के बारे में समझाइये।
उत्तर-
ऐसे क्षेत्र जहाँ पर बहुत अधिक जैवविविधता होती है, उन्हें जैवविविधता के तप्त स्थल (Biodiversity hotspot) कहते हैं। इसकी अवधारणा सर्वप्रथम 1988 में नार्मन मेयर्स (Norman Myers) ने दी थी। इस आधार पर 1999 में विश्व के 25 क्षेत्रों को जैवविविधता तप्त स्थल घोषित किया गया। वर्तमान में विश्व में 34 बायोडाइवर्सिटी हॉट स्पॉट हैं। इन क्षेत्रों में विश्व की वनस्पतियों की 50 प्रतिशत स्थानबद्ध (endemic) प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
किसी भी क्षेत्र को जैवविविधता तप्त स्थल घोषित करने के लिए दो शर्तों का होना आवश्यक है
उस क्षेत्र में विश्व की कुल स्थानबद्ध प्रजातियों की 0.5 प्रतिशत से अधिक प्रजातियाँ उपस्थित हों। संख्या के दृष्टिकोण से उस स्थान पर कम से कम 1500 स्थानबद्ध प्रजातियाँ होनी चाहिए।
उस क्षेत्र के मूल आवास का 70 प्रतिशत उजड़ चुका हो अर्थात् मानव गतिविधियों से उस क्षेत्र के अस्तित्व पर संकट गहरा रहा हो।
इस प्रकार के क्षेत्रों को संरक्षण की तत्काल आवश्यकता होती है इसीलिए इन्हें बायोडाइवर्सिटी हॉटस्पॉट घोषित किया जाता है तथा यहाँ पर व्यापक स्तर पर संरक्षण कार्यक्रम चलाये जाते हैं। घोषित 34 बायोडाइवर्सिटी हॉटस्पॉट का कुल क्षेत्रफल पृथ्वी के कुल क्षेत्रफल का मात्र 2-3 प्रतिशत है। विश्व के कुछ प्रमुख बायोडाइवर्सिटी हॉटस्पॉट-अटलांटिक वन, पूर्वी मलेशियाई द्वीप समूह, दक्षिणपश्चिम चीन के पर्वत, मेडागास्कर के द्वीप समूह, मध्य अमेरिका, कोलम्बिया चोको, मध्य चिली, पूर्वी हिमालय, पश्चिमी घाट, श्रीलंका, इंडो-बर्मा आदि हैं।
भारत के जैवविविधता तप्त स्थल (Biodiversity hotspots of India)-
दो तप्त स्थल पूर्वी हिमालय व पश्चिमी घाट पूर्ण रूप से भारत में स्थित हैं। जबकि इंडो-बर्मा तप्त स्थल में कुछ भारतीय भूभाग हैं।
पूर्वी हिमालय जैवविविधता तप्त स्थल-इसके अन्तर्गत पूर्वी हिमालय का असम, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम तथा पश्चिम बंगाल राज्यों का क्षेत्र आता है। हिमाचल पर्वत श्रृंखला पूर्णतः जैवविविधता से संपन्न है। यहाँ वनस्पतियों की 10,000 प्रजातियाँ मिलती हैं, जिनमें से 3,160 प्रजातियाँ स्थानबद्ध हैं। इस क्षेत्र में पाये जाने वाले प्रमुख जीवों के नाम हैं-हिमालय तहर, सुनहरा लंगूर, हुलोक गिब्बन, पिग्मी हॉग, उड़न गिलहरी, हिम तेंदुआ, ताकिन, गांगेय डॉल्फिन आदि। गांगेय डॉल्फिन को 2002 में भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया है।
पश्चिमी घाट जैवविविधता तप्त स्थल–यह भारत के पश्चिमी तट से लगा हुआ पश्चिमी घाट विश्व का एक प्रमुख जैवविविधता तप्त स्थल है। इसमें केरल राज्य सम्मिलित है। इस क्षेत्र में वनस्पतियों की 5916 प्रजातियाँ पाई जाती हैं। जिनमें से लगभग 50 प्रतिशत स्थानबद्ध (endemic) हैं। यहाँ पाये जाने वाले मुख्य जीव हैं-मालाबार गन्ध बिलाव, एशियाई हाथी, मालाबार ग्रे लॅर्नबिल, नीलगिरी तहर, मैकाक बन्दर इत्यादि।
इंडो-बर्मा जैवविविधता तप्त स्थल-यह तप्त स्थल उष्णकटिबंधीय पूर्वी एशिया में चीन, भारत, म्यांमार, वियतनाम, थाइलैण्ड, कम्बोडिया तथा मलेशिया के क्षेत्र में है। यहाँ असंख्य वनस्पतियाँ, स्तनधारी जीव, उभयचर व मछलियों की प्रजातियाँ मिलती हैं।
प्रश्न 28.
जैवविविधता के महत्त्व को समझाइये।
उत्तर-
जैवविविधता एक प्राकृतिक संसाधन है। इसमें जीवों के जीवन के लिए प्राकृतिक एवं जैविक स्रोत मिलते हैं। इससे ही मानव की आधारभूत आवश्यकताओं की पूर्ति होती है। जैवविविधता का महत्त्व निम्न प्रकार से है
(i) आर्थिक महत्त्व-जैवविविधता से ही मानव की आधारभूत आवश्यकताओं भोजन, ईंधन, चारा, इमारती लकड़ी, औद्योगिक कच्चा माल, कपड़ा व मकान प्राप्त होता है। बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जैवविविधता का उपयोग कृषि पैदावार बढ़ाने के साथ-साथ रोगरोधी तथा कीटरोधी फसलों की किस्मों के विकास में किया जा रहा है। उदाहरणार्थ-हरित क्रांति के लिए गेहूं की बौनी किस्मों का विकास जापान के नारीन-10 नामक गेहूं की किस्म से तथा धान की बौनी किस्मों का विकास ताईवान में पायी जाने वाली डी-जियो-रु-जेन नामक धान की प्रजाति से किया गया था। सन् 1970 के दशक में जब एशिया महाद्वीप के क्षेत्र में धान की फसलें ग्रासी स्टन्ट विषाणु से नष्ट हो गई थीं तब पूर्वी उत्तर प्रदेश में 1963 में संग्रहित की गई जंगली धान की प्रजाति ‘ओराइजा निवेरा’ (Oryza nivara) से उक्त रोग के प्रति प्रतिरोधी क्षमता विकसित की गई। यदि यह प्रजाति संरक्षित नहीं की जाती तो हम कल्पना कर सकते हैं कि एशिया महाद्वीप में जहाँ अधिक जनसंख्या धान पर निर्भर है, उसकी क्या हालत होती?
वर्तमान में जंगली धान के रोगरोधी और कीटरोधी 20 मुख्य जीन्स (genes) का उपयोग धान सुधार कार्यक्रम में हो रहा है। अभी विश्व पेट्रोलियम पदार्थों के सीमित संसाधनों तथा उनके अनियंत्रित दोहन से चिंतित है। ऐसे में जैट्रोपा व करंज नामक पौधों से बायोडीजल प्राप्त करने का प्रयास किया जा रहा है।
(ii) औषधीय महत्त्व (Medicinal Value)-प्राचीन काल से ही पौधों का औषधीय क्षेत्र में विशेष महत्त्व रहा है। आयुर्वेद में तो पौधों से ही प्राप्त औषधियों से इलाज किया जाता है। कुनैन का इलाज सिनकोना पादप की छाल से, सदाबहार विनक्रिस्टीन (Vincristine) तथा विनब्लास्टीन (Vinblastine) पौधों का उपयोग असाध्य रक्त कैंसर (Leukemia), टैक्सस बकाटा वृक्ष की छाल का कैंसर रोग में तथा सर्पगन्धा का उपयोग रक्तचाप के इलाज में किया जाता है। अनेक पौधे जैसेतुलसी, ब्राह्मी, अश्वगंधा, शतावरी, गिन्गो गिलोय आदि पौधों में एड्स (AIDS) रोधी गुण पाये जाते हैं।
(iii) पर्यावरणीय महत्त्व (Environmental Value)-
(अ) खाद्य-श्रृंखला का संरक्षण (Conservation of food chain)-
पारिस्थितिक तंत्र में एक जीव अन्य जीव का भक्षण करते हैं अतः एक प्रजाति किसी अन्य प्रजाति पर निर्भर होती है। यदि तंत्र में एक प्रजाति विलुप्त हो जाये तो खाद्य श्रृंखला का असंतुलन हो जाता है परन्तु जैवविविधता सम्पन्न होने से खाद्य श्रृंखला के वैकल्पिक पथ होते हैं, जिसके कारण खाद्य श्रृंखलायें त्रिस्तर रहती हैं। इसकी कमी अन्य प्रजाति पूर्ण करती है। इस प्रकार खाद्य श्रृंखला का संरक्षण होता है।
(ब) पोषक चक्र नियंत्रण (Protection of nutrient cycle)-
जैवविविधता पोषक चक्र को गतिमान रखती है। मिट्टी में विद्यमान जीवाणुओं की विविधता जीवों के मृत भागों को विघटित करके पुनः पौधों को उपलब्ध कराती है। अतः इस प्रकार से यह चक्र गतिमान रहता है।
(स) पर्यावरण प्रदूषण का निस्तारण (Expeditation of environmental pollutants)-
अनेक पौधे प्रदूषकों का विघटन व अवशोषण करने की क्षमतायुक्त होते हैं। जैसे सदाबहार पौधे में ट्राइनाइट्रोटोलुईन विस्फोटक का विघटन करने की क्षमता होती है। अनेक जीवाणु जैसे स्यूडोमोनास प्यूटिडा, आर्थोबेक्टर विस्कोसस व साइट्रोबेक्टर प्रजातियों में औद्योगिक अपशिष्ट से भारी धातुओं को हटाने की क्षमता होती है। राइजोपस ओराइजीस कवक में यूरेनियम व थोरियम तथा पेनिसीलियम क्राइसोजीनम में रेडियम जैसे घातक तत्वों को हटाने की क्षमता होती है।
(iv) सामाजिक, सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक महत्त्व (Social, cultural and spiritual value)-मानव व वनस्पति का सम्बन्ध प्राचीन समय से रहा है। आज भी कुछ आदिवासी अपनी सम्पूर्ण आवश्यकतायें पौधों से प्राप्त करते हैं। कुछ पौधे जैसे तुलसी, पीपल, बरगद, केला, आम, आंवला का आज भी हमारी संकृति में विशेष स्थान है। समय-समय पर इनकी पूजा की जाती है। प्राणियों में भी गाय, बछडे, मोर, हंस, चूहा, हाथी, कौए को भी हमारी संस्कृति में महत्त्व है। हमारे देश में ऐसे वन क्षेत्र हैं जिन्हें देववन कहा जाता है, लोग स्वेच्छा से इनका संरक्षण करते हैं।
विश्व स्तर पर जैवविविधता के इस महत्त्व को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र संघ ने.. वर्ष 2010 को अन्तर्राष्ट्रीय जैव विविधता वर्ष के रूप में मनाया। वस्तुतः जैवविविधता प्रकृति का अनुपम उपहार है जो पृथ्वी पर जीवन को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। अतः हम सभी का कर्तव्य है कि हम जैवविविधता का संरक्षण करें ताकि पृथ्वी पर जीवन अपने विभिन्न रूपों में सदैव मुस्कराता रहे।
प्रश्न 29.
उन विभिन्न कारणों की विवेचना करें जो जैवविविधता के ह्रास के लिए उत्तरदायी हैं?
उत्तर-
वैसे प्रकृति में जीवों का विलुप्त होना व नई प्रजातियों का पैदा होना एक प्राकृतिक घटना है किन्तु अनेक ऐसे कारण हैं जिससे वर्तमान में जैवविविधता पर संकट उत्पन्न हो गया है। आज लगभग 4000 जन्तु प्रजातियाँ तथा 60,000 वनस्पति प्रजातियाँ विलुप्त होने के कगार पर हैं। वर्तमान में हम फसलों की 75 प्रतिशत आनुवंशिक विविधता खो चुके हैं। गत वर्षों में भारत से एशियाई चीता, जावाईन गैंडा, हिमालयन क्वेल, पिंक हैडेड डक पूर्ण रूप से विलुप्त हो चुके हैं। जैवविविधता संकट के निम्न कारण हैं
प्राकृतिक आवासों को नष्ट होना (Habitat loss)-प्रत्येक जीव अपने निश्चित आवास में रहकर जीवनयापन व अपनी संख्या में वृद्धि करता रहता है। बढ़ती जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए हम इन प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर रहे हैं। वनों की कटाई, वनस्पति के रोग, कृषि भूमि का विस्तार, शहरीकरण, रेल-रोड मार्ग, उद्योग-धंधों की स्थापना के लिए निरन्तर वनों को साफ किया जा रहा है। इस कारण जैवविविधता नष्ट हो रही है तथा जीवों का विलुप्तीकरण बढ़ता जा रहा है।
प्राकृतिक आवास विखण्डन (Habitat Fragmentation)-वन्य प्राणियों के लिए पूर्व में बड़े-बड़े अविभक्त क्षेत्र विस्तारित थे, परन्तु आज अनेक ऐसे कारण जैसे रेल-रोड मार्ग, गैस पाइप लाइन, नहर, विद्युत लाइन, बाँध, खेत, शहर आदि के कारण इनके प्राकृतिक आवास विखण्डित हो गये हैं। इससे उनके प्राकृतिक क्रियाकलाप बाधित होते हैं तथा ये अपने को इन गतिविधियों से असुरक्षित महसूस करते हैं। अनेक प्राणी वाहनों की चपेट में आने से मर जाते हैं या मानव बस्ती में आ जाने पर मार दिये जाते हैं। दुधवा राष्ट्रीय उद्यान से गुजरने वाली रेलवे लाइन से प्रतिवर्ष अनेक प्राणी दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं।
जलवायु परिवर्तन (Climate change)-मानव क्रियाकलापों व प्रदूषण के कारण आज पृथ्वी पर ग्रीन हाउस गैसों की मात्रा काफी बढ़ती जा रही है, इस कारण पृथ्वी का तापक्रम निरन्तर बढ़ता जा रहा है। बढ़ते तापमान के कारण ध्रुवों पर जमा बर्फ पिघलकर समुद्रों के जलस्तर को बढ़ा रहे हैं। इससे समुद्री जैवविविधता तथा समुद्र के आसपास की विविधता को नष्ट होने का खतरा बढ़ता जा रहा है। एक अनुमान के अनुसार यदि पृथ्वी का तापमान 3.5 डिग्री सेन्टीग्रेड बढ़ता है तो विश्व की 70 प्रतिशत प्रजातियों पर विलुप्तता का खतरा हो जायेगा।
पर्यावरण प्रदूषण (Environmental pollution)-पर्यावरण प्रदूषण का दुष्प्रभाव प्राणियों व पौधों पर पड़ता है। औद्योगिक अपशिष्ट से प्रदूषित भूमि व जल में अनेक वनस्पति व जीव नष्ट हो जाते हैं। अत्यधिक वायु प्रदूषण के फलस्वरूप होने वाली तेजाबी वर्षा से भी अनेक सूक्ष्मजीव व वनस्पति नष्ट हो जाती। है। इसी प्रकार कृषि पैदावार बढ़ाने के लिए रासायनिक खाद व कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग से मृदा में पाए जाने वाले सूक्ष्मजीव विलुप्त हो रहे हैं जिससे भूमि । की उर्वरता भी प्रभावित हो रही है।
प्राकृतिक संसाधनों का अनियंत्रित विदोहन (Over exploitation of Natural Resources)-मानव ने व्यावसायिक लाभ हेतु वनस्पति व जीवजन्तुओं का अत्यधिक व अनियंत्रित दोहन किया है जिसके कारण अनेक प्रजातियों का जीवन संकट में पड़ गया है। जैसे कि यूरोप व उत्तरी अमेरिका में मेंढक की टांगों का उपयोग खाने में स्वाद बढ़ाने के लिए किया जाता है। अनेक देशों ने मेंढक की टांगों का निर्यात किया है, जिससे मेंढकों की संख्या कम हो गई है। वे कीट जिन्हें मेंढक खाते हैं, उनकी संख्या में वृद्धि हो गई है। इस कारण भारत ने 1 अप्रेल 1987 से मेंढकों के व्यवसाय पर रोक लगा दी।
कृषि व वानिकी में व्यावसायिक प्रवृत्ति (Industrial practices in Agriculture and Forestry)-हरित क्रान्ति से पूर्व में किसान अपने खेतों में विभिन्न किस्मों के अनाज, फल, सब्जी आदि उगाते थे तथा विभिन्न नस्लों के पशु रखते थे। परन्तु कम समय में अधिक उत्पादन की लालसा में वर्तमान में किसान उन्नतबीजी कुछ प्रजातियों को ही उगाता है तथा अधिक उत्पादन देने वाले पशु की संकर नस्लों को ही रखते हैं। इस कारण आनुवंशिक जैवविविधता तेजी से नष्ट होती जा रही है। उदाहरणार्थ इण्डोनेशिया में गत 15 वर्षों से 80 प्रतिशत किसान अधिक उत्पादन देने वाली चावल की कुछ संकर किस्में ही उगा रहे हैं जिससे वहां चावल। की लगभग 1500 स्थानीय किस्में विलुप्त हो चुकी हैं। इससे भविष्य में खतरा है। क्योंकि यदि कभी महामारी फैली तो सभी फसलें एक साथ नष्ट हो जायेंगी तथा भूखे मरने की स्थिति बन जाएगी।
इसी प्रकार पेपर, माचिस, प्लाईवुड व औद्योगिक कच्चे माल के लिए आज प्राकृतिक वनों को नष्ट कर एक ही प्रजाति (Monoculture) के वन उगाए जा रहे हैं जिससे जैवविविधता में निरन्तर कमी आ रही है।
विदेशी प्रजातियों का आक्रमण (Invasion of Foreign Species)-कभी-कभी विदेशी प्रजातियों के आने से स्थानीय प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ जाता है व पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन पैदा हो जाता है। कुछ विदेशी प्रजातियों जैसे लैन्टाना व जलकुम्भी को सौन्दर्यांकरण हेतु भारत में लाया गया। ये प्रजातियाँ शीघ्रता से सम्पूर्ण भारत में फैल गईं व स्थानीय जातियाँ नष्ट होने लग गईं। विदेशी आयातित गेहूँ के साथ हमारे देश में गाजर घास (Parthenium) आई, जिसके कारण समस्या उत्पन्न हो गई। (लघूत्तरात्मक प्रश्न संख्या 22 में भी देखिये) । यही स्थिति वन्य जीवों के साथ भी होती है।
अंधविश्वास एवं अज्ञानता (Superstition and Ignorance)कभी-कभी अंधविश्वास व अज्ञानता के कारण भी जैवविविधता पर संकट बढ़ जाता है। जैसे मनुष्यों की बोली समझने की भ्रामक अवधारणा के कारण गागरोनी तोते बड़ी संख्या में पकड़े जाने से लुप्त हो गए हैं। यौनवर्द्धक माने जाने वाले गोडावण पक्षी का अधिक संख्या में शिकार होने से यह जाति आज संकटग्रस्त है। इसी प्रकार ग्रामीण क्षेत्रों में यह धारणा है कि गोयरे की सांस जहरीली होती है, इस कारण ग्रामीण गोयरे को देखते ही मारने का प्रयास करते हैं।
प्रश्न 30.
जैवविविधता के संरक्षण हेतु हुए प्रयासों पर एक लेख लिखिये।
उत्तर-
1968 में विश्व प्राकृतिक संरक्षण संघ (IUCN) ने अध्ययन कर 1972 में ‘रेड डाटा बुक’ का प्रकाशन किया जिसमें लुप्त हो रही जातियों को सूचीबद्ध किया। IUCN ने 1973 में एक कनवेंशन CITES (Convention of international trade in endangered species) आयोजित की जिसमें संकटग्रस्त प्रजातियों के अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार पर नियंत्रण लगाया। 1992 में ब्राजील के शहर रियो-डि-जिनिरियो में पृथ्वी सम्मेलन हुआ जिसमें सभी देशों में जैवविविधता के संरक्षण हेतु प्रयास को बढ़ावा देने की सहमति बनी।।
इसे देखकर भारत सरकार ने 2002 में जैवविविधता एक्ट 2002 बनाया। इस एक्ट के अनुसार जैवविविधता का संरक्षण, जैवविविधता का उपयोग इस प्रकार हो कि यह लम्बे समय तक उपलब्ध रहे व इसका समान वितरण सभी में हो। इस एक्ट में त्रिस्तरीय संगठन का प्रावधान है-राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय जैवविविधता प्राधिकरण, राज्यों में जैवविविधता बोर्ड तथा स्थानीय स्तर पर जैवविविधता प्रबंध समितियाँ। भारत में पर्यावरण, वन, जल व वायु जैवविविधता कानूनों को एक दायरे में लाने के उद्देश्य से 2 जून, 2010 को राष्ट्रीय हरित अधिकरण का गठन हुआ जिसका मुख्यालय भोपाल में है।
जैवविविधता का संरक्षण निम्न दो प्रकार से किया जाता है
स्वःस्थाने संरक्षण (In-situ Conservation)-जीवों के विकास एवं वृद्धि के लिए इनके प्राकृतिक आवास ही सर्वाधिक उपयुक्त होते हैं। ऐसा संरक्षण जो प्राकृतिक आवास में ही मानव द्वारा प्रदत्त अनुरक्षण से किया जाता है, स्वःस्थाने (Insitu) संरक्षण कहलाता है। जिस संकटग्रस्त प्रजाति को संरक्षित करना होता है, उसके अनुसार चयनित प्राकृतिक आवास में ही अनुकूल परिस्थितियाँ एवं सुरक्षा उपलब्ध कराई जाती है। इसके तहत जीवमण्डल रिजर्व (Biosphere Reserve), राष्ट्रीय उद्यान (National Parks), अभयारण्य (Wild Life Sancturies) तथा संरक्षण रिजर्व (Conservation Reserve) आदि की स्थापना की जाती है। वर्तमान में भारत में 14 जैवमण्डल रिजर्व, 99 राष्ट्रीय उद्यान तथा 523 वन्यजीव अभयारण्य तथा 47 संरक्षित रिजर्व स्थापित किए जा चुके हैं, जिनमें देश का कुल 1,58,745 वर्ग किमी. क्षेत्र संरक्षित हो चुका है जो देश के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का लगभग 4.83 प्रतिशत है।
बहिस्थाने संरक्षण (Ex-situ Conservation)-जैवविविधता संरक्षण की इस विधि में संकटग्रस्त पादप व जन्तु प्रजातियों को उनके प्राकृतिक आवास से बाहर कृत्रिम आवास में संरक्षण प्रदान किया जाता है। इसके तहत वनस्पति प्रजातियों के संरक्षण हेतु वानस्पतिक (Botanical) उद्यान, बीज बैंक, उतक संवर्धन प्रयोगशाला (Tissue culture laboratories) आदि की स्थापना की जाती है। वहीं जन्तुओं के संरक्षण हेतु चिड़ियाघर, एक्वेरियम आदि की स्थापना की जाती है। संकटग्रस्त पादपों व जन्तुओं के जननद्रव्यों (Germplasm) अर्थात् बीज, फल, पराग, बीजाणु, शुक्राणु, अण्डाणु आदि का संरक्षण निम्न ताप संरक्षण विधि (Cryopreservation) व मंद वृद्धि कल्चर (Slow Growth Culture) तकनीक से किया जाता है। इसके अलावा संकटग्रस्त पौधों या जन्तुओं के जीन्स (Genes) को अंकुरणक्षम अवस्था में जीन बैंकों (Gene Banks) में सुरक्षित रखा जाता है।