Class 10 Chapter 2 Science Notes मानव तंत्र ( Human System )

 

1. पाचन तंत्र (Digestive System)

मानव पाचन एक जटिल प्रक्रिया है। जिसमें बड़े जैविक तत्वों को छोटे कणों में तोड़ा जाता है, जिसका प्रयोग शरीर ईंधन के तौर पर करता है। पोषक तत्वों को छोटे कणों में तोड़ने के लिए मुंह, पेट, आंतों और यकृत में उपस्थित विशेष कोशिकाओं से निकलने वाले कई एन्जाइमों के समन्वय की आवश्यकता होती है। पाचन प्रक्रिया में एन्जाइम महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है और पाचन की क्रिया मुंह से शुरू होती है एवं छोटी आंत में समाप्त होती है। बड़ी आंत में किसी प्रकार का पाचन कार्य नहीं होता है। इसमें उपस्थित जीवाणु विटामिन B और विटामिन K का उत्पादन करते है।


                                          चित्र: 2.1 मानव पाचन तन्त्र


मानव पाचन तंत्र के विभिन्न अंगों व ग्रन्थियों का परिचय निम्नलिखित प्रकार से है

(अ) अंग

(1) मुंह (mouth)

(2) ग्रसनी (pharynx)

(3) ग्रासनली (oesophagus )

(4) आमाशय (stomach)

(5) छोटी आंत (small intestine)

(6) बड़ी आंत (large intestine)

(7) मलद्वार (Rectum)


(ब) ग्रन्थियाँ

(1) लार ग्रन्थि (salivaty glond )

(2) यकृत ग्रन्थि (Liver)

(3) अग्न्याशय ग्रन्थि (pancreas) 

आहारनाल (Alimentary canal) मुख से शुरू होकर मलद्वार तक जाती है। यह लगभग 8-10 मीटर तक लंबी होती है। इसे पाचन नाल (Digestive canal) भी कहा जाता है।


आहारनाल के तीन प्रमुख कार्य होते है

(क) आहार को सरलीकृत कर पचाना

(ख) पचित आहार का आवशोषण

(ग) आहार को मुख से मलद्वार तक पहुँचाना।


 पाचन तंत्र में प्रयुक्त होने वाले अंग (Organs used in Digestive System)

पाचन कार्य में मुख से लेकर मलद्वार तक अनेकों अंग कार्य करते हैं। अब हम इन अंगों के बारे में विस्तृत रूप से चर्चा करगें।

1. मुख (Mouth)

आहारनाल का अग्र भाग मुख से प्रारंभ होता है। मुख मुखगुहा में खुलता है। यह एक कटोरेनुमा (boul shoed) अंग है मुख दो माँसल होठों से घिरा रहता है। मुख के ऊपर व नीचे के भाग में जबड़े में 1616 दाँत पाये जाते हैं तथा एक पेशीय जिहवा होती है। जिह्वा मुखगुहा में अधर तल पर फ्रेनुलम लिंगुअल द्वारा जुड़ी होती है। प्रत्येक दाँत जबड़े में बने एक साँचे में स्थित होता है, जिसे मसूड़ा (Gum) कहते हैं। मनुष्य के दांत गर्तदंती व द्विबारदंती होते हैं। इस तरह से कुल 32 दाँत होते हैं, जिनमें से 20 दुधिया (अस्थाई) दाँत होते है। मनुष्य में चार प्रकार के दाँत पाये जाते है।

(अ) कृंतक (incisors)- सबसे आगे के दाँत भोजन को कुतरने व काटने का कार्य करते हैं। प्रत्येक जबड़े में 4-4 होते है। ये छः माह की उम्र में निकलते है।

(ब) रदनक (canines)- भोजन को चीरने-फाड़ने का कार्य करते है। मांसाहारी में अधिक विकसित होते है। प्रत्येक जबड़े में 2-2 होते है। ये 16-20 की उम्र में निकलते हैं। 

(स) अग्र चवर्णक (premolars)- ये दाँत भोजन को चबाने का कार्य करते हैं। प्रत्येक जबड़े में 4-4 होते हैं। ये 10 11 वर्ष की उम्र में पूर्ण रूप से विकसित होते हैं।

(द) चवर्णक (molars)-ये दाँत भी भोजन चबाने का कार्य करते है तथा प्रत्येक जबड़े में 6-6 पाये जाते हैं। ये 12-15 माह की उम्र में है।


2.  ग्रसनी (Pharynce)

यह कीप के समान संरचना इसमें कोई पाचन नहीं होती है। पीछे की ओर ग्रासनाल श्वास नाल में खुलती है। भोजन से हुए ग्रासनाल तथा वायु श्वासनाल पहुंचती ग्रसती अपनी संरचना ये सुनिश्चित है कि किसी भी सूरत में भोजन श्वासनाल वायु भोजन नाल में प्रवेश न कर सकें।

की संरचना तीन भागों में विभक्त किया है।

(अ) नासाग्रसनी (Maspharynx)

(ब)  मुख ग्रसनी (Oropharynx)

(स) कंठ-ग्रसनी अधो-ग्रसनी (Laryngopharynx Hypopharynx)





3.  ग्रासनली (Oesophagus)

ग्रसनी अमाशय तक भोजन पहुंचाने वाली लगभग 25 सेंटीमीटर लंबी पेशीय नली को ग्रासनली कहा जाता यह नली छठे सर्वाइकल वर्टिब्रा स्तर से शुरू होकर डायाफ्राम को छिद्रित करती हुई ग्यारहवें थॉरेंसिक वर्टिब्रा स्तर पर आमाशय कार्डियक सिरे पर जाकर खुलती ग्रासनली की भित्ति चार परतों मिलकर बनी होती इसकी सबसे भीतरी परत श्लैष्मिक शल्की उपकला द्वारा स्तरित होती और श्लेष्मा का स्राव करती है। इसकी ऊपर वाली परत म्यूकोसा और पेशीय परत जोड़ती इसमें रक्त वाहिकाओं और तंत्रिकाओं के साथ-साथ श्लेष्मिक ग्रन्थियाँ होती इन ग्रन्थियों से स्रावित श्लेष्म भोजन को लसदार बनाता है। लैरिक्स के शीर्ष पर ऊतकों का एक पल्ला (Flap) होता है, यह पल्ला घाटी ढक्कन एपिग्लॉटिस कहलाता है। भोजन निगलते समय यह पल्ला बंद जाता तथा भोजन को श्वासनली में प्रवेश करने से रोकता है।


4. आमाशय (Stomach) 

ग्रसिका एक पतली लम्बी नली, गर्दन, यक्ष एवं मध्यपट से होते हुए पश्च भाग थैलीनुमा आमाशय में खुलती है। आमाशय, उदर गुहा के ऊपरी बाएं भाग स्थित होता है। यह एक लचीला अंग है तथा पेशीय आकार की संरचना है। आमाशय को तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

(अ) कार्डियक या जठरागम भाग: यह बांया बडा भाग है, जहाँ ग्रसिका आमाशय में प्रविष्ठ होती है।

(ब) जठर निर्गमी भाग: यह आमाशय का दाहिना छोटा भाग है, जहाँ से आमाशय छोटी आंत से जुड़ता है।

(स) फंडिस भागः यह जठरागम व जठर निर्गमी भागों के मध्य को संरचना है। आमाशय दो अवरोधिनी या संकोचक पेशियाँ पाई जाती है ये दोनों पेशियाँ आमाशय की सामग्री को अंतर्विष्ट करती है 

(क) ग्रास नलिका अवरोधनी (Cardiac or lower esoph ageal sphineter) यह ग्रसिका व आमाशय को विभाजित करती है तथा आमाशय से अम्लीय भोजन को ग्रसिका में जाने से रोकती है।

(ख) जठर निर्गमीय अवरोधिनी (pyloric sphincter)- यह आमाशय को छोटी आंत को विभाजित करती है तथा आमाशय से छोटी आंत में भोजन विकास को करती है।


5.  छोटी आँत (Small Intestine)

यह आमाशय से लेकर बड़ी आंत तक खुलने वाली लगभग 7 मीटर लंबी नली होती है, जो नाभि क्षेत्र में बड़ी आंत से घिरी होती है। छोटी आंत के द्वारा ही भोजन का सर्वाधिक पाचन तथा अवशोषण होता है। छोटी आंत को तीन भागों में विभक्त किया जाता है-

(अ) ग्रहनी (Duodenum)- घोड़े की नाल के आकार का लगभग 25 सेटींमीटर लंबा छोटी आंत का पहला भाग अग्नाशय के सिरे को चारों ओर से घेरे होता है उसे ग्रहणी कहते हैं। इसके बीच पित्त वाहिनी और अग्न्याशयिक वाहिनी आकर खुलती है। ग्रहणी भोजन के रासायनिक पाचन में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

(ब) अग्र क्षुदान्त्र (Jejunum) यह छोटी आंत के शेष भाग का - ऊपरी 2/5 भाग होता है। यह लगभग 2.5 मीटर (8 फीट) लंबा होता है। यहाँ ग्रहणी में पचित आहार का अवशोषण आन्त्रकोशिकाओं द्वारा किया जाता है।

(स) क्षुद्रांत (ileum) - यह छोटी आंत का आखिरी 3/5 भाग होता वें है, जो बड़ी आंत के पहले भाग, सीकम तक फैला होता है। यह लगभग 35 मीटर लंबा होता है। यह विशेष रूप से उन पोषक तत्वों (पित्त लवण व विटामिनों) का अवशोषण करती है जिनका अग्र क्षुद्रान्त्र में अवशोषण नहीं हो पाता है। यहाँ रंसाकुर एवं सूक्ष्माकुर पाये जाते हैं।


6.  बड़ी आंत (Large intestine)

छोटी आंत का अंतिम छोर या भाग क्षुद्रांत्र बड़ी आंत में विलीन हो जाता है। यहां पर इलियोसीकल कपाट होता है जिससे भोजन छोटी आंत से बड़ी आंत में चला जाता है लेकिन बड़ी आंत से छोटी आंत में वापिस लोटकर नहीं आता है। यह मलाशय और गुदीय नली तक पहुंचने वाली लगभग 15 मीटर लम्बी नली होती है जो छोटी आंत की तुलना में अधिक चौड़ी होती है। बड़ी आंत में भोजन का पाचन और अवशोषण नहीं होता है। बड़ी आंत में आने वाले भोजन का शेष भाग तरल अवस्था में होता है जब यह बड़ी आंत से होकर गुजरता है तो पानी का अवशोषण होता है, जिससे यह ठोस हो जाता है। बड़ी आंत के श्लेष्मिक अस्तर से निकलने वाला श्लेष्मा मल को आगे की ओर खिसकने के लिए उसे चिकना बना देता है। अतः बड़ी आंत का मुख्य कार्य जल व खनिज लवणों का अवशोषण व अपचित भोजन को से उत्सर्जित करना है। मनुष्यों में बड़ी आंत को तीन भागों में विभक्त किया गया है।

(अ) अधान्त्र अथवा अंधनाल (caccum) अंघनाल एक छोटा थैला है जिसमें कुछ सहजीवी जीवाणु रहते है। अंधनाल से चार पाँच इन्च / लम्बा एक अंगुली जैसा प्रवर्ध निकलता है जिसे कृमिरुपी परिशेषिका कहते है। यह एक अवशेषी अंग है। अंधनाल बड़ी आंत में खुलती है। यहां क्षुद्रांत्र से आने वाले आहार रस का अवशोषण होता है तथा शेष बचे अपशिष्ट को वृहदांत्र में पहुंचा दिया जाता है।

(ब) वृहदान्त्र (colon)- आहरनाल में बड़ी आंत का अंधान्त्र के आगे वाला भाग वृहदान्त्र कहलाता है। यह उल्टे U के आकार की करीब 1-3मीटर लम्बी नालिका होती है।

वृहदान्त्र को चार भागों में विभक्त किया जा सकता है 

(1) आरोही वृहदान्त्र - यह करीब 15 सेमी. लम्बी नलिका होती है।

(2) अनुप्रस्थ वृहदान्त्र- करीव 50 सेमी. लम्बी नलिका है।

(3) अवरोही वृहदान्त्र- यह करीव 25 सेमी. की नलिका है। में है इसका भाग मलाशय में खुलता है।

(4) सिग्माकार वृहदान्त्र- करीब 40 से.मी नलिका है।

(स) मलाशय (Rectum)- वृहदांत्र का अवरोही भाग मलाशय में खुलता है जो मलद्वार (vanus) द्वारा बाहर खुलता है। यह आहारनाल का अंतिम भाग है, जो करीब 20 से. मी लम्बा होता है। मलद्वार पर आकर आहार नाल समाप्त होती है पाचित आहार रस के अवशोषण के बाद शेष रहे अपशिष्ट पदार्थ बहार निकलने की प्रक्रिया को संवरणी पेशियाँ नियंत्रित करती है।


2.  पाचन ग्रन्थियाँ (Salivary Glands)

1.  लार ग्रन्थियाँ (Digestive Glands)  

 ये ग्रन्थियां लार उत्पन्न करती हैं। लार एक सीरमी तरल तथा एक चिपचिपे श्लेष्मा का मिक्षण होता है। लार का मुख्य कार्य भोजन में उपस्थित स्टार्च का मुख में पाचन शुरू करना, भोजन को चिकना व घुलनशील बनाना है। लार का निर्माण तीन जोड़ी ग्रन्थियों द्वारा होता है।


                       चित्र 2.3: मानव में लार ग्रन्थियाँ


(अ) कर्णपूर्ण ग्रन्थि (parotid) ये ग्रन्थि गाल में उपस्थित होती है तथा सीरमी तरल का स्राव करती है। 

(ब) अधोजंभ/अवचिबुकीय लार ग्रन्थि (submandibular sa livary gland)- यह ग्रन्थि निचले जबड़े में होती है। यह मिश्रित ग्रन्थि है। जिससे तरल तथा श्लेष्मिक स्त्रावण होता है।

(स) अधोजिह्वा ग्रन्थि (Sublingual gland)- यह ग्रन्थि जिह्वा के नीचे पायी जाती है तथा श्लेष्मिक स्त्रावण होता है।


2.  अग्न्याशय (Pancrease)

अग्न्याशय U आकार के ग्रहणी के बीच स्थित एक मिश्रित ग्रन्थि है जो वहि: स्रावी और अंत: स्रावी, दोनों ही ग्रन्थियों की तरह कार्य करती है। बहि: स्रावी भाग से क्षारीय अग्न्याशयी स्रावित होता है। इस ग्रन्थि की लम्बाई 6 से 8 इंच लम्बी होती है। इससे स्रावित पाचक रस में उपस्थित एंजाइम कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन व वसा का पाचन करते हैं। इससे स्रावित इन्सुलिन व ग्लूकेगोन हार्मोन रक्त में शर्करा की मात्रा को नियन्त्रित स्तर तक बनाये रखते हैं।


3.  यकृत (Liver)

यकृत (Liver) मनुष्य के शरीर की सबसे बड़ी ग्रन्थि है, जिसका वयस्क में भार लगभग 1.2 से 15 किलोग्राम होता है। यह उदर में मध्यपट के ठीक नीचे स्थित होता है और इसमें 5 पालियाँ (lobes) होती है। यकृत पालिकाएँ (लगभग 1,00,000) यकृत की संरचनात्मक और क्रियात्मक इकाइयाँ है जो झिल्लीमय आवरण या आच्छद द्वारा घिरा होता है, जिसे ग्लिसन केप्सूल कहते है। यकृत की कोशिकाओं से पित्त का स्राव होता है जो यकृत नलिका से होते हुए एक पतली पेशीय थैली-पित्ताशय में सान्द्रित एवं जमा होता है। पित्ताशय की नलिका यकृतीय नलिका से मिलकर एक मूल पित्त वाहिनी बनाती है। पित्ताशय नलिका एवं अग्न्याशयी नलिका दोनों मिलकर यकृत अग्न्याशयी वाहिनी द्वारा ग्रहणी में खुलती है जो ओडी अवरोधनी से नियंत्रित होती है।

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